सदसत्-विवेचन नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।। असतः - असत् का तो भावः - भाव ( सत्ता ) न, विद्यते - विद्यमान नहीं है तु - और सतः - सत् का अभावः - अभाव न, विद्यते - विद्यमान नहीं है तत्वदर्शिभिः - तत्व दर्शी महापुरुषों ने अनयोः - इन उभयोः - दोनों का अपि - ही अन्तः - तत्व दृष्टः - देखा अर्थात् अनुभव किया है। "असत् का कभी अस्तित्व नहीं होता और जो सत् है, उसकी कभी अविद्यमानता नहीं होती। वास्तव में तत्वद्रष्टाओं ने इन दोनों का इस प्रकार अंतिम निश्चय किया है।"