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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गीताध्याय 2, श्लोक -16

सदसत्-विवेचन नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।। असतः - असत् का तो भावः - भाव ( सत्ता ) न, विद्यते - विद्यमान नहीं है तु - और सतः - सत् का अभावः - अभाव न, विद्यते - विद्यमान नहीं है तत्वदर्शिभिः - तत्व दर्शी महापुरुषों ने अनयोः - इन उभयोः - दोनों का अपि - ही अन्तः - तत्व दृष्टः - देखा अर्थात् अनुभव किया है। "असत् का कभी अस्तित्व नहीं होता और जो सत् है, उसकी कभी अविद्यमानता नहीं होती। वास्तव में तत्वद्रष्टाओं ने इन दोनों का इस प्रकार अंतिम निश्चय किया है।"

गीताध्याय -2, श्लोक -14,15

geeta द्वन्द्वों की अनित्यता मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। (14) कौन्तेय - हे कुन्तीनन्दन! मात्रास्पर्शाः - इन्द्रियों के विषय ( जड पदार्थ ) तु - तो शीतोष्णसुखदुःखदाः - शीत (अनुकूलता ) और उष्ण ( प्रतिकूलता ) के द्वारा सुख और दुःख देने वाले हैं ( तथा ) आगमापायिनः - आने जाने वाले ( और ) अनित्याः - अनित्य हैं। भारत - हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! तान् - उनको ( तुम ) तितिक्षस्व - सहन करो। यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ। समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।। (15) हि - कारण कि पुरुषर्षभ - हे पुरुषों में श्रेष्ठ अर्जुन! समदुःखसुखम् - सुख-दुःख में सम रहने वाले यम् - जिस धीरम् - बुद्धिमान पुरुषम् - मनुष्य को एते - ये मात्रा स्पर्श ( पदार्थ ) न, व्यथयन्ति - विचलित ( सुख-दुःख ) नहीं करते, सः - वह अमृतत्वाय - अमर होने में कल्पते - समर्थ हो जाता है अर्थात् वह अमर हो जाता है।   "हे कुंती पुत्र! इंद्रियों और...

गीताध्याय -2, श्लोक -13

@geeta शरीर का शोक व्यर्थ देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।। (13) देहिनः - देहधारी के अस्मिन् - इस देहे - मनुष्य शरीर में यथा - जैसे कौमारम् - बालकपन, यौवनम् - जवानी ( और ) जरा - वृद्धावस्था ( होती है ), तथा - ऐसे ही देहान्तरप्राप्तिः - दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। तत्र - उस विषय में धीरः - धीर मनुष्य न, मुह्यति - मोहित नहीं होता। "देहधारी ( आत्मा ) को इस देह में जिस प्रकार बालपन, तरुणाई और बुढ़ापा प्राप्त होता है, उसी प्रकार ( आगे उसी आत्मा को ) दूसरी देह की प्राप्ति होती है। अतः इस विषय में ज्ञानी पुरुष मोहित नहीं होता।"