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लघुसिद्धान्तकौमुदी संज्ञा प्रकरण

लघुसिद्धान्तकौमुदी || श्रीगणेशाय नमः || लघुसिद्धान्तकौमुदी नत्त्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम् | पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम् |      लघुसिद्धांतकौमुदी के प्रारंभ में कौमुदी कर्ता वरदराजाचार्य ने नत्वा सरस्वतीं देवीम् इस श्लोक से मंगलाचरण किया है | मंगलाचरण के तीन प्रयोजन है - 1- प्रारंभ किए जाने वाले कार्य में विघ्न ना आए अर्थात् विघ्नों का नाश हो , 2- ग्रंथ पूर्ण हो जाए अौर , 3- रचित ग्रंथ का प्रचार - प्रसार हो।

लघुसिद्धान्तकौमुदी पदसंज्ञाविधायक संज्ञासूत्र

14-  सुप्तिङन्तं पदम्  1|4|14|| पदसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम् 14- सुप्तिङन्तं पदम् 1|4|14|| सुबन्तं तिङन्तं च पदसंज्ञं स्यात् | इति संञ्ज्ञाप्रकरणम् ||1||      सुबन्त और तिङन्त पद संज्ञक होते हैं।

लघुसिद्धान्तकौमुदी उदात्त, अनुदात्त, स्वरितसंज्ञाविधायक संज्ञासूत्र

लघुसिद्धान्तकौमुदी उदात्तसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम् 6- उच्चैरुदात्तः 1|2|29|| अनुदात्तसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम् 7- नीचैरनुदात्तः 1|2|30|| स्वरितसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम् 8- समाहारः स्वरितः 1|2|31|| स नवविधोऽपि प्रत्येकमनुनासिकत्वाननुनासिकत्वाभ्यां द्विधा |