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लघुसिद्धान्तकौमुदी |
प्रत्याहारसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम्
4- आदिरन्त्येन सहेता 1|1|71||
अन्त्येनेता सहित आदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् यथाऽणिति अइउवर्णानां संज्ञा | एवमच् हल्अलित्यादयः ||
इस सूत्र में किसी पद की अनुवृत्ति नहीं आती है।
अन्त्य इत्संज्ञक वर्ण के साथ उच्चारित आदि वर्ण मध्य के वर्णों का और अपना भी संज्ञा-बोधक होता है।
आदिरन्त्येन सहेता यह सूत्र प्रत्याहार संज्ञा करता है | जैसे अण् प्रत्याहार, अक् प्रत्याहार, अच् प्रत्याहार, अल् प्रत्याहार, हल् प्रत्याहार आदि | एक उदाहरण देखते हैं- जैसे आंग्लभाषा में Doctor का अर्थ होता है रोगों का चिकित्सक | ये अपने नाम के आगे Dr. लिखते हैं | जैसे- Dr. Jeevan sharma. में लिखते तो हैं Dr. किंतु हम समझते हैं Doctor. अर्थात लिखते दो अक्षर हैं समझते हैं 6 अक्षरों का अर्थ | इसी प्रकार Pandit में Pt. लिखते हैं | ठीक इसी तरह पाणिनीय व्याकरण में भी बहुत को संक्षिप्त में लिखने का नियम है | इसी को प्रत्याहार कहा जाता है।
सूत्रार्थ विचार- अन्त्येन इता सहित आदिः= अन्त्य इत्संज्ञक वर्ण के साथ उच्चारित आदि वर्ण जैसे अइउण् इस सूत्र में ण् की हलन्त्यम् इस सूत्र से इत्संज्ञा की गई थी | उसके साथ पढ़े गए वर्ण है अ, इ, उ किंतु इनमें आदि वर्ण है अ, वह आदि वर्ण, मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात्= मध्य के इ, उ वर्णों का बोध कराता हुआ= जानकारी देता हुआ अर्थात् ग्रहण करता हुआ स्वयं अपना अर्थात् अ का भी बोधक होता है | इस तरह अण् कहने से अ, इ, उ इन तीन वर्णों का बोध हुआ | अब जहां भी अण् कहा जाएगा उससे अ, इ, उ इन तीन वर्णों का ग्रहण हुआ करेगा | यहां एक प्रश्न यह होता है कि अइउण् में ण् भी है तो प्रत्याहार में उसका बोध या ग्रहण क्यों नहीं होता ? आपको याद दिला दूॅं कि ण् इस अन्त्य हल् वर्ण की हलन्त्यम् इस सूत्र से इत्संज्ञा और उसका तस्य लोपः इस सूत्र से लोप हो गया है, अर्थात् दर्शन हो गया है | तात्पर्य यह है कि न सुनाई पड़े और उसका ग्रहण न हो सके, ऐसा हो गया है | इसलिए अण् के ग्रहण में ण् का ग्रहण नहीं होता।
अण् आदि प्रत्याहारों को साधने की प्रक्रियाः- अण् प्रत्याहार साधना है, इसकी स्थिति है अइउण् | इस स्थिति में सूत्र लगा- हलन्त्यम् | उपदेश अवस्था में अन्त्य हल् वर्ण की इत्संज्ञा होती है | उपदेश अवस्था है- अइउण् और अन्त्य हल् वर्ण है- अइउण् का ण् | उसकी इत्संज्ञा हो गई अर्थात् उसका नाम इत् पड़ गया | इत्संज्ञा का फल है लोप | इत्संज्ञा के बाद लोप करने के लिए सूत्र आया तस्य लोपः | उस इत्संज्ञक वर्ण का लोप होता है | इत्संज्ञक वर्ण है अइउण् वाला ण् | उसका लोप अर्थात अदर्शन हो जाए | इस तरह इस इत्संज्ञक वर्ण का अदर्शन अर्थात लोप प्राप्त हुआ, परंतु पहले लोप नहीं होता क्योंकि उच्चारण करके लोप ही करना था तो पहले उच्चारण ही क्यों किया गया ? अतः उच्चारणसामर्थ्यात् अन्य कोई प्रयोजन भी इसका होना चाहिए और वह है प्रत्याहारसिद्धि | अतः प्रत्याहार सिद्ध करने के लिए सूत्र लगा- आदिरन्त्येन सहेता | अन्त्य इत्संज्ञक वर्ण है- अइउण् वाला ण्, उसके सहित उच्चारित आदि वर्ण है अ | वह अर्थात् अन्त्य सहित आदि अण् यह समुदाय, मध्यवर्ती इ, उ वर्ण और आदि वर्ण अ का भी बोधक (संज्ञा) होता है | इस तरह से यह सूत्र अण् इस शब्द से आदि वर्ण अ और मध्यवर्ती वर्ण इ, उ का बोध कराएगा | इस प्रकार से अण् से अइउ, इन तीन वर्णों का ही बोध या ग्रहण अथवा श्रवण हो जाता है | प्रत्याहार सिद्धि के बाद ण् आदि इत्संज्ञक वर्णों का तस्य लोपः से लोप हो जाता है | इसीलिए उस अन्त्य इत्संज्ञक वर्ण का प्रत्याहारों में ग्रहण नहीं होता | इस प्रकार अण् प्रत्याहार की साधना हो गई और अण् से या अण् प्रत्याहार से अ-इ-उ इन तीन वर्णों का बोध हुआ | इसी तरह से अन्य प्रत्याहारों की सिद्धि करनी चाहिए।
यथाऽणिति अइउवर्णानां संज्ञा | एवमच् हल्अलित्यादयः | जिस प्रकार से अण् से अ, इ, उ इन तीन वर्णों का बोध हुआ, उसी प्रकार से अच्, हल्, अल् आदि प्रत्याहारों के द्वारा मध्यवर्ती वर्ण तथा आदि वर्ण का बोध होता है, ऐसा समझना चाहिए।
अच् प्रत्याहार की सिद्धि- अच् प्रत्याहार की साधना करनी है तो इसकी स्थिति है- अइउण्, ऋलृक्, एओङ्, ऐऔच् | ऐसी स्थित में सूत्र लगा- हलन्त्यम् | उपदेश अवस्था में अन्त्य हल् वर्ण की इत्संज्ञा होती है | उपदेश अवस्था है- अइउण्, ऋलृक्, एओङ्, ऐऔच् | अन्त्य हल् वर्ण है- अइउण् का ण्, ऋलृक् का क्, एओङ् का ङ्, और ऐऔच् का च् | इन चारों हल् वर्णों की इत्संज्ञा इस सूत्र से हो गई अर्थात् उनका नाम इत् पड़ गया | इत्संज्ञा का फल प्रत्याहार सिद्धि है | अतः तस्य लोपः से पहले ही लोप हो जाए तो प्रत्याहार सिद्ध नहीं होंगे | इसलिए इसको बाध कर सूत्र लगा- आदिरन्त्येन सहेता | इस सूत्र के बल से आदि वर्ण सहित बीच के अइउ, ऋलृ, एओ, ऐऔ इन नौ वर्णों का ही बोध या ग्रहण या श्रवण हो जाता है | इस प्रकार अच् प्रत्याहार की साधनी हो गई और अच् से या अच् प्रत्याहार से अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ इन नौ वर्णों का बोध हुआ | इसी प्रकार 43 प्रत्याहारों की सिद्धि करना जानें | 14 सूत्रों से प्रत्याहार तो सैकड़ों बन सकते हैं किंतु पाणिनीय व्याकरण में केवल 43 प्रत्याहारों का व्यवहार हुआ है, इसलिए 43 प्रत्याहारों की ही सिद्धि करनी है | कुछ वैयाकरणों का मत है कि प्रत्याहार केवल 42 ही होते हैं।
प्रत्याहार सूत्रों के विषय में स्मरणीय कुछ बातें-
अच् प्रत्याहार में समस्त स्वर वर्ण आते हैं | ये 4 सूत्रों में कहे गए हैं।
हल् प्रत्याहार में समस्त व्यंजन वर्ण आते हैं | ये 10 सूत्रों में कहे गए हैं।
वर्गों के सभी पांचवें वर्ण ञमङणनम् एक ही सूत्र और ञम् प्रत्याहार में आते हैं।
वर्गों के चौथे वर्ण दो सूत्रों झभञ्, घढधष् में तथा झष् प्रत्याहार में आते हैं।
वर्गों के तीसरे वर्ण जबगडदश् इस एक ही सूत्र में और जश् प्रत्याहार में आते हैं।
वर्गों के दूसरे एवं पहले वर्ण खफछठथचटतव्, कपय् इन दो सूत्रों में तथा खय् प्रत्याहार में आते हैं।
प्रत्याहार का प्रारंभिक वर्ण अ जैसा आदि वर्ण तो होता ही है साथ में इ से भी इक्, इण् प्रत्याहार, उ से उक् आदि प्रत्याहार भी बनते हैं, अर्थात् इ से, उ से, लृ से, य् से, व् से, र आदि मध्यवर्ती वर्णों से भी शुरुआत करके प्रत्याहार बनाए जाते हैं, क्योंकि यहां पर विवक्षित समुदाय का आदि और अन्त्य लिया जाता है।
पाणिनीय व्याकरण में प्रयुक्त 43 प्रत्याहारों में गृहीत वर्णों का क्रम-
क्र.सं. | प्रत्याहार | घटक वर्ण |
---|---|---|
1. | अण् | अ, इ, उ | |
2. | अक् | अ, इ, उ, ऋ, लृ | |
3. | इक् | इ, उ, ऋ, लृ | |
4. | उक् | उ, ऋ, लृ | |
5. | एङ् | ए, ओ | |
6. | अच् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ | |
7. | इच् | इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ औ, | |
8. | एच् | ए, ओ, ऐ, औ | |
9. | ऐच् | ऐ, औ | |
10. | अट् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, | |
11. | अण् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, ल् | |
12. | इण् | इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, ल् | |
13. | यण् | य्, व्, र्, ल् | |
14. | अम् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, | |
15. | यम् | य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, | |
16. | ञम् | ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, | |
17. | ङम् | ङ्, ण्, न्, | |
18. | यञ् | य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ् | |
19. | झष् | झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् | |
20. | भष् | भ्, घ्, ढ्, ध् | |
21. | अश् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द् | |
22. | हश् | ह्, य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द् | |
23. | वश् | व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द् | |
24. | जश् | ज्, ब्, ग्, ड्, द् | |
25. | झश् | झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द् | |
26. | बश् | ब्, ग्, ड्, द् | |
27. | छव् | छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् | |
28. | यय् | य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प् | |
29. | मय् | म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प् | |
30. | झय् | झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प् | |
31. | खय् | ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प् | |
32. | चय् | च्, ट्, त् क्, प् | |
33. | यर् | य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स् | |
34. | झर् | झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स् | |
35. | खर् | ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स् | |
36. | चर् | च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स् | |
37. | शर् | श्, ष्, स् | |
38. | अल् | अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह्, य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स्, ह् | |
39. | हल् | ह्, य्, व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स्, ह् | |
40. | वल् | व्, र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स्, ह् | |
41. | रल् | र्, ल्, ञ्, म्, ङ्, ण्, न्, झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स्, ह् | |
42. | झल् | झ्, भ्, घ्, ढ्, ध् ज्, ब्, ग्, ड्, द्, ख्, फ्, छ्, ठ्, थ्, च्, ट्, त् क्, प्, श्, ष्, स्, ह् | |
43. | शल् | श्, ष्, स्, ह् | |
वर्ग विभाजन
कवर्ग:- क्, ख्, ग्, घ्, ङ् |
चवर्ग:- च्, छ्, ज्, झ्, ञ् |
टवर्ग:- ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण् |
तवर्ग:- त्, थ्, द्, ध्, न् |
पवर्ग:- प्, फ्, ब्, भ्, म् |
वर्गों के प्रथम अक्षर- क्, च्, ट्, त्, प् |
वर्गों के द्वितीय अक्षर- ख्, छ्, ठ्, थ्, फ् |
वर्गों के तृतीय अक्षर- ग्, ज्, ड्, द्, ब् |
वर्गों के चतुर्थ अक्षर- घ्, झ्, ढ्, ध्, भ् |
वर्गों के पंचम अक्षर- ङ्, ञ्, ण्, न्, म् |
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