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लघुसिद्धान्तकौमुदी |
लोपविधायकं विधिसूत्रम्
3- तस्य लोपः 1|3|9||
तस्येतो लोपः स्यात् | णादयोऽणाद्यर्थः |
उस इत्संज्ञक वर्ण का लोप होता है |
इत्संज्ञक के लिए प्रकरण के अनुसार अनेक सूत्र विद्यमान हैं | जिन वर्णों की हलन्त्यम् आदि सूत्रों के द्वारा इत्संज्ञा की जाती है, उनका यह सूत्र लोप करता है अर्थात् अदर्शन कर देता है |
पूरे व्याकरण में इत्संज्ञा के बाद लोप करने के लिए केवल एक यही सूत्र है | तस्य इतः= उस इत्संज्ञक वर्ण का लोपः स्यात्= लोप होवे | इस प्रकार से अइउण् में ण् की, ऋलृक् में क् आदि की हलन्त्यम् सूत्र के द्वारा इत्संज्ञा की गई थी, उनका इस सूत्र से लोप हो जाता है | इस प्रकार 14 सूत्रों में अन्त्य वर्ण की इत्संज्ञा और उसके बाद लोप करके अइउ, ऋलृ, एओ, ऐऔ, हयवर, ल, ञमङणन, झभ, घढध, जबगडद, खफछठथचटत, कप, शषस, ह मात्र शेष बचते हैं | प्रत्याहारों में इन्हीं वर्णों का ग्रहण होगा, इत्संज्ञक वर्णों का नहीं।णकारादि अन्त्य वर्णों का प्रयोजन- णादयोऽणाद्यर्थाः | णादयः= अइउण्, ऋलृक् आदि में जो णकार, ककार आदि पढ़े गए हैं, वे अणाद्यर्थाः= अण् आदि प्रत्याहारों की सिद्धि के लिए हैं | अर्थात् प्रत्याहारों की सिद्धि करते समय इनका उपयोग किया जाता है | तात्पर्य यह है कि अइउण् आदि 14 सूत्रों के अन्त्य में जो हल् वर्ण लगे हुए हैं, उनका प्रयोजन प्रत्याहार की सिद्धि है।
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