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लघुसिद्धान्तकौमुदी |
संयोगसंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम्
13- हलोऽनन्तराः संयोगः 1|1|7||
अज्भिरव्यवहिता हलः संयोगसंज्ञाः स्युः |
अचों से अव्यवहित हल् संयोगसंज्ञक होते हैं।
संयोग माने साथ होना | संसार में विजातीयों के साथ होने को भी संयोग कहा जाता है किंतु व्याकरण में सजातीय हल्-हल् के साथ होने पर ही संयोग माना गया है | हलत्वेन सजातीय ही ग्राह्य है | हलः यह बहुवचन सामान्यतया गृहीत है अर्थात् द्विवचन को सामान्यतया बहुवचन से ही ग्रहण किया गया है जिससे दो और दो से अधिक वर्णों के बीच में कोई भी अच् न हो तो उन सभी हलों के समुदाय अर्थात् समूह की संयोगसंज्ञा होती है | जैसे देवदत्त, शर्मा, सिद्ध, पत्नी आदि | यहाॅं पर दत्त में दो तकार हैं और दोनों के बीच में कोई भी अच् अर्थात् स्वर वर्ण नहीं है | इसलिए त्-त् इस हल् समुदाय की संयोगसंज्ञा हो जाती है | इसी प्रकार पत्नी में त् और न् के बीच में कोई भी अच् नहीं है, अतः त्-न् इस हल् समुदाय की संयोगसंज्ञा हो जाती है।
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