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sanskrit vykaran |
वरदराजाचार्य एवं उनकी प्रक्रिया
पाणिनीय व्याकरण की प्रक्रिया शैली को सरल एवं सुबोध बनाने वालों में अन्य उल्लेख्य नाम जुड़ता है वरदराजाचार्य का | ये भट्टोजिदीक्षित के शिष्य थे | इनके पिता का नाम दुर्गातनय था |
इनकी रचनाओं में मध्य सिद्धांत कौमुदी, लघु सिद्धांत कौमुदी, एवं सार सिद्धांत कौमुदी आदि ग्रंथ आते हैं, जो दीक्षित जी की सिद्धांत कौमुदी के संक्षेपीकरण के रूप में जाने जाते हैं | इन तीनों में आज तक लघुसिद्धांतकौमुदी सर्वोत्तम एवं अत्यंत प्रसिद्ध है, जो प्रायः सर्वत्र व्याकरण प्रवेशार्थी के लिए पठन-पाठन का मुख्य ग्रंथ बना है।लघुसिद्धांतकौमुदी
अपने गुरु भट्टोजिदीक्षित के द्वारा ग्रंथित वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी को वरदराजाचार्य के समय में बहुत ख्याति मिल चुकी थी | वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी प्रौढ़ एवं प्रत्युत्पन्न मति वाले जिज्ञासु छात्र ही अध्ययन कर सकते हैं क्योंकि भट्टोजिदीक्षित जी ने पाणिनीयाष्टाध्यायी के सभी सूत्रों को लेकर इस कौमुदी का निर्माण किया है, जो वेद, धर्मशास्त्र, पुराण आदि ग्रंथों के प्रायः सभी शब्दों की सिद्धि संभव है | ग्रंथ के अंत में स्वर और वैदिक प्रक्रिया को जोड़कर अत्यंत विशालतम कलेवर से परिपूर्ण इस ग्रंथ के द्वारा लौकिक एवं वैदिक दोनों शब्दों का साधुत्व ज्ञान किया जा सकता है | प्रारंभिक छात्रों के लिए वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी में प्रवेश कर पाना बहुत ही कठिन है | इसी विषय को हृदयंगम करके वरदराज आचार्य ने लघुसिद्धांतकौमुदी की रचना की | इसमें केवल 1275 सूत्रों को ही लेकर सरल से सरल बनाने का प्रयत्न किया | प्रकरणों का भी व्यत्यास किया | वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी का प्रकरण क्रम है- संज्ञा प्रकरण, पंच संधि, षड्लिङ्ग, अव्यय, स्त्री प्रत्यय, कारक, समास, तद्धित, तिङन्त, कृदंत और अंत में वैदिकी प्रक्रिया और स्वर प्रक्रिया | लघुसिद्धांतकौमुदी में कुछ परिवर्तन के साथ संज्ञा प्रकरण, पंच संधि, षड्लिंग, तिङन्त, कृदंत, कारक, समास, तद्धित और अंत में स्त्री प्रत्यय प्रकरण है | पहले संज्ञाओं का ज्ञान, तत्पश्चात संधि ज्ञान, फिर सुबन्तप्रक्रिया के पश्चात धातु प्रकरण होना ही युक्तिसंगत लगता है क्योंकि कृत् प्रत्यय धातुओं से ही होते हैं और कृदन्त शब्दों में प्रातिपादिकत्व के आ जाने के बाद ही तद्धित प्रत्यय हो सकते हैं | कृत् और तद्धित प्रत्ययों के आधार पर प्रायः स्त्री प्रत्यय होते हैं | कारक प्रकरण में भी अकथितं च और कर्तृकरणयोस्तृतीया, उक्तानुक्तव्यवस्था आदि भी धातु तिङ् और कृत् के बाद होने का समर्थन करते हैं | अतः बीच में धातु प्रकरण, तदनन्तर कृत्प्रकरण, तदनु कारक-समास- तद्धित प्रकरण और सर्वांत में स्त्री प्रत्ययों का प्रकरण सहेतुक है | यही क्रम वरदराजाचार्य जी ने लघुसिद्धान्तकौमुदी में अपनाया है।
आचार्य ने पहले लघुसिद्धांतकौमुदी बनाकर अपने गुरु भट्टोजिदीक्षित को दिखाया तो वे बहुत प्रसन्न हुए | तत्पश्चात उन्होंने 2315 सूत्रों को लेकर मध्यसिद्धांतकौमुदी बनाई तो इससे भट्टोजिदीक्षित को प्रसन्नता नहीं हुई, क्योंकि यह कौमुदी वैदिकी प्रक्रिया को छोड़कर शेष प्रकरणों से वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी की प्रतिस्पर्धिनी लग रही थी | आज मध्यसिद्धांतकौमुदी का पठन-पाठन लघुसिद्धांतकौमुदी और वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी की अपेक्षा कम होती है | व्याकरण का संपूर्ण ज्ञान वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी के बाद ही संभव है | उसमें प्रवेश के लिए अलग से लघुसिद्धान्तकौमुदी का अध्ययन होना आवश्यक है | वरदराज आचार्य ने लघुसिद्धान्तकौमुदी को प्रवेशिका ही माना है | जैसा कि उनके मंगलाचरण से स्पष्ट होता है |
नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम् |
पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम् |
पाणिनीय शब्द शास्त्र में प्रवेश होने की योग्यता प्राप्त करना ही इस ग्रंथ का उद्देश्य है।
लघुसिद्धान्तकौमुदी में वरदराजाचार्य ने गागर में सागर को भरा है इसके समुचित अध्ययन से सुकुमारमति और अल्पग्राहिणी बुद्धि वाले छात्र आसानी से व्याकरण का सामान्य ज्ञान कर सकेंगे और उन्हें प्रत्येक प्रकरणों का ज्ञान हो जाएगा | प्रतिभाशाली छात्र इसके बाद सीधे वैयाकरणसिद्धांतकौमुदी में प्रवेश कर सकेंगे | व्याकरण में चाहने वाले छात्रों के लिए प्रवेशिका की दृष्टि से यह अत्यंत सहायिका है, इसमें संदेह नहीं है |
सुद्ध्युपास्यः, मद्ध्वरिः, धात्त्रांशः, लाकृतिः आदि उदाहरणों का तात्पर्य
अध्येतागण इस बात को भी जान लें कि व्याकरण का उद्देश्य केवल शब्द ज्ञान, संधिज्ञान मात्र नहीं है अपितु उसके साथ ही अध्येताओं को अध्यात्म की ओर प्रेरित करना भी है | इस बात पर श्री भट्टोजिदीक्षित जी एवं उनके ग्रंथों के व्याख्याताओं ने विशेष ध्यान दिया है | जैसे- सुद्ध्युपास्यः, मद्ध्वरिः, धात्त्रांशः, लाकृतिः इन उदाहरणों की जगह मद्ध्वानय, दध्यानय, वद्ध्वानय, पित्रंशः भी दे सकते थे | उपर्युक्त उदाहरण देने का रहस्य यह है कि अध्येता शब्द ज्ञान के साथ उपास्य का ज्ञान भी कर ले, इतिहास आदि से भी परिचित हो लें और तत्तत् पौराणिक और उपनिषद की घटनाओं को समझने, जानने के लिए उत्प्रेरित हो जाएं | जैसे सुधीभिः उपास्यः (विद्वानों के द्वारा उपासना करने योग्य) | यहां पर सुधी (विद्वान्) को किसी इष्टदेव की उपासना अवश्य करनी चाहिए, यह एक प्रेरणा है तो दूसरा विद्वानों के द्वारा उपास्य कौन है ? इसकी जिज्ञासा भी | इस जिज्ञासा की पूर्ति करता है मद्ध्वरिः | मधु नामक दैत्य के शत्रु भगवान् विष्णु अर्थात् विद्वानों के द्वारा भगवान विष्णु उपास्य हैं | अब वे कैसे हैं ? इस जिज्ञासा के उत्तर में आया- धात्त्रांशः | वह धातुः अंशः, ब्रह्मा का अंश बनकर अर्थात ब्रह्मा के शरीर से वराह आदि बनकर अथवा धाता की सृष्टि में राम, कृष्ण आदि बनकर अवतार लेता है | इसलिए वह धात्त्रंश है | उसे प्राप्त करना क्या सरल है ? नहीं | वह तो लाकृति है अर्थात् लृ की तरह टेढ़़ी आकृति वाला है | अतः कठिन तपस्या एवं साधना से ही प्राप्त हो सकता है।
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