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लघुसिद्धान्तकौमुदी |
संहितासंज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम्
12- परः सन्निकर्षः संहिता 1|4|109||
वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहितासंज्ञः स्यात् |
वर्णों की अत्यंत सन्निधि संहितासंज्ञक होती है अर्थात् वर्णों की अत्यंत समीपता को संहिता कहते हैं।
आगे जाकर के हमें दो शब्दों के बीच संधि करनी है और संधि करने वाले सारे सूत्र संहिता के विषय में ही कार्य करते हैं | संहिता भी एक संज्ञा ही है | जिनकी आपस में संहितासंज्ञा नहीं हुई, उनकी संधि नहीं हो सकती | इसलिए यहाॅं संधिप्रकरण में प्रवेश करने के पहले इस सूत्र के द्वारा संहितासंज्ञा की जाती है।
संहितासंज्ञा वहीं होगी जहाॅं सन्धि किए जाने वाले वर्ण आपस में अत्यंत नजदीक में बैठे हों | जैसे राम+अवतार में राम के म् के बाद जो अ है वह अवतार के आदि अ के अत्यंत समीप में है | अतः दोनों अकारों की आपस में संहितासंज्ञा हो गई और संधिप्रकरण के सूत्र अकः सवर्णे दीर्घः से दीर्घ संधि होकर रामावतार बन जाता है | यदि राम के बाद बीच में कुछ और वर्ण आ जाए और उसके बाद अवतार बोला जाए तो राम+........अवतार में संधि नहीं हो सकती, क्योंकि राम और अवतार के बीच (अन्य वर्ण) अधिक काल (समय आदि) का व्यवधान है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जिन दो वर्णों की संधि होनी है, उनके बीच में किसी वर्ण को नहीं होना चाहिए और समय भी तत्काल ही होना चाहिए | किसी ने राम ऐसा अभी बोला और 1 घंटे के बाद अवतार बोला तो भी संधि नहीं होगी क्योंकि वहां भी वर्णों की अत्यंत सन्निधि अर्थात् समीपता नहीं है | तात्पर्य यह है कि लिखने, पढ़ने, बोलने, सुनने में वर्णों की अत्यंत समिपता चाहिए संधि के लिए।
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