![]() |
लघुसिद्धान्तकौमुदी |
ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत-संज्ञाविधायकं संज्ञासूत्रम्
5- ऊकालोऽज्झ्रस्वदीर्घप्लुतः 1|2|27||
उश्च ऊश्च ऊ३श्च वः, वां काल इव कालो यस्य सोऽच् क्रमाद् ह्रस्वदीर्घप्लुतसंज्ञः स्यात् | स प्रत्येकमुदात्तादिभेदेन त्रिधा ||
समाहार द्वन्द्व होने के बाद नपुंसकलिङ्ग ही होना चाहिए, किन्तु सूत्र में पाणिनि ने कहीं-कहीं ऐसा नहीं किया है, अतः सूत्रत्वात् पुॅॅॅंल्लिङ्ग मान लिया जाता है | सूत्रों से अन्यत्र ऐसी जगहों पर पुॅंल्लिङ्ग नहीं हो सकता, नपुंसकलिङ्ग ही होता है |
एक मात्रिक उकार, द्विमात्रिक ऊकार और त्रिमात्रिक उ३कार के उच्चारण काल के समान उच्चारण काल वाले अचों की क्रमशः ह्रस्वसंज्ञा, दीर्घसंज्ञा और प्लुतसंज्ञा होती है।
उश्च ऊश्च उ३श्च वः | एकमात्रिक उ और द्विमात्रिक ऊ एवं तीन मात्रिक उ३ का चार्थे द्वन्द्वः से इतरेतरयोगद्वन्द्व समास करके प्रातिपदिक संज्ञा, विभक्ति लोप, परस्पर में सवर्ण दीर्घ करने पर ऊ रूप बनता है | उससे जस् प्रत्यय लाकर ऊ को यण् करके वः यह रूप सिद्ध होता है | वः का ही षष्ठ्यन्त रूप वाम् है | ऊकालः यह पद अच् का विशेषण है | उसी को बताने के लिए मूल में वां काल इव कालो यस्य ऐसा कहा गया | पर वह भी ऊकालः इस समस्त (समास किए हुए) पद का विग्रह नहीं है, अपितु फलितार्थ कथन मात्र है | अतः वां काल ऊकालः, ऊकाल इव कालो यस्य ऐसा विग्रह करना चाहिए | यहाॅं पर काल शब्द लक्षणावृत्ति से मात्रावाची है | अतः ऊकालः= तीनों उकारों का जो उच्चारण काल वाली मात्राए को (ऊकाल इव कालो यस्य) ऐसी ही मात्राएॅं हैं जिस अच् की, वह अच् क्रमशः ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत संज्ञा वाला होता है।
प्रकृत सूत्र अच् अर्थात् स्वर वर्णों को मात्रा के आधार पर ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत संज्ञा करता है | अचों (स्वरों) में एक, दो, एवं तीन मात्राएॅं होती हैं | अ, इ, उ, ऋ, लृ की मात्राएॅं जिन्हें हिंदी में छोटी मात्राएं कहते हैं उनकी ह्रस्व संज्ञा और आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएॅं जिन्हें हिंदी में बड़ी मात्रा कहते हैं, इनकी दीर्घ संज्ञा होती है | तीन मात्रा की प्लुत संज्ञा होती है | लोक में एकमात्रिक एवं द्विमात्रिक का ही प्रयोग होता है, तीन मात्रा वाला वर्ण हिंदी में कम प्रयुक्त होता है | केवल संस्कृत में संबोधन, प्रकृतिभाव आदि में तीन मात्रिक वर्ण का उच्चारण होता है तथा तीनमात्रिक को दिखाने के लिए वर्ण के बाद ३ का अंक लिखा जाता है | जैसे कि इ३ | इस तीन मात्रा वाले की प्लुतसंज्ञा होती है।
एकमात्रिक, द्विमात्रिक और त्रिमात्रिक वर्णों का उच्चारण काल- प्रश्न यह आता है कि एक मात्रा, दो मात्राएॅं और तीन मात्राएॅं, इनका उच्चारण के समय एवं अनुपात क्या होना चाहिए ? इतना तो स्पष्ट है ही कि एकमात्रिक के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसका दुगुना समय द्विमात्रिक के उच्चारण में लगेगा और तिगुना समय तीन मात्रा वाले अच् में लगेगा | फिर भी एक प्रश्न उपस्थित होता है कि एक मात्रा वाले अच् में कितना समय लगाया जाए ? इस पर प्राचीन विद्वानों के कई मत हैं | जैसे पलकें झपकना, बिजली चमकना, नीलकंठ पक्षी की बोली आदि को एक मात्रा उच्चारण काल माना है किंतु मेरा मत यह है कि वर्णों के उच्चारण तीन प्रकार से होते हैं- द्रुत, मध्यम और विलम्बित | द्रुत अर्थात् अत्यंत शीघ्रता के साथ उच्चारण, मध्यम उच्चारण एवं विलम्बित उच्चारण | आप किस प्रकार से उच्चारण कर रहे हैं ? अत्यंत शीघ्रता के साथ उच्चारण, मध्यम उच्चारण या विलंबित उच्चारण! उसके अनुसार एक मात्रा के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसका दुगुना समय दो-मात्रा के उच्चारण में लगायें और तिगुना समय तीन मात्रा वाले अच् में लगायें | अथवा यूॅं कहा जाय कि ह्रस्व के उच्चारण में 1 सेकंड का समय तो दीर्घ के उच्चारण में 2 सेकड का समय और प्लुत के उच्चारण में 3 सेकंड का समय लगाया जाय | उच्चारण के इस अनुपात का बहुत ध्यान रखना चाहिए।
इस सूत्र के द्वारा प्रत्येक अच् की ह्रस्व, दीर्घ एवं प्लुत संज्ञा करके अचों (स्वरों) के तीन तीन भेद किए गए | इस प्रकार से अच् प्रत्याहार के प्रत्येक वर्ण तीन-तीन प्रकार के हुए- ह्रस्व अच्, दीर्घ अच् एवं प्लुत अच् |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया सुझाव या टिपण्णी में मर्यादा का ध्यान रखें