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गीताध्याय -1, श्लोक -17-18-19

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पांडवों के अन्य सेनानायकों द्वारा शंखनाद


काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।
द्रुपदो द्रोपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्।।

पृथिवीपते - हे राजन्!
परमेष्वासः - श्रेष्ठ धनुष वाले
काश्यः - काशिराज
च - और
महारथः - महारथी
शिखण्डी - शिखण्डी
च - तथा
धृष्टद्युम्नः - धृष्टद्युम्न
च - एवं
विराटः - राजा विराट
च - और
अपराजितः - अजेय
सात्यकिः - सात्यकिः,
द्रुपदः - राजा द्रुपद
च - और
द्रोपदेयाः - द्रोपदी के पांचों पुत्र
च - तथा
महाबाहुः - लम्बी-लम्बी भुजाओं वाले
सौभद्रः - सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु ( -इन सभी ने )
सर्वशः - सब ओर से
पृथक्, पृथक् - अलग-अलग ( अपने-अपने )
शङ्खान् - शंख
दध्मुः - बजाये।

    वैसे शिखंडी कोई ऐसा वीर नहीं था कि उसे महारथी की पदवी दी जाती। पर चूंकि भीष्म पितामह का युद्ध में पतंग उसी के हाथों से होना है, इसलिए यह विशेषण उसके लिए लगा दिया गया।

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।।

च - और
सः - ( पाण्डव-सेना के शंखों के ) उस
तुमुलः - भयंकर
घोषः - शब्द ने
नभः - आकाश
च - और
पृथिवीम् - पृथ्वी को
एव - भी
व्यनुनादयन् - गूंजते हुए
धार्तराष्ट्राणाम् - अन्याय पूर्वक राज्य हडपने वाले दुर्योधन आदि के
हृदयानि - हृदय
व्यदारयत् - विदीर्ण कर दिये।

      ऊपर तेरहवें श्लोक में कहा गया है कि कौरवों ने युद्ध के जो बाजे बजाय, उन सब का सम्मिलित स्वर 'तुमुल' हुआ। यहां पर यह बताया कि पांडवों द्वारा किया गया शब्द भी 'तुमुल' हुआ। पर दोनों में एक अंतर है। पहले यह नहीं बताया गया कि कौरवों के तुमुल शब्द की पांडवों पर कोई प्रतिक्रिया हुई, जबकि यहां यह बताया जा रहा है कि पांडवों के तुमुल शब्द ने कौरव दल के लोगों का हृदय विदीर्ण कर दिया। यह भी मानो पांडवों की विजय की सूचना है। वैसे, कौरवों की सेना पांडवों की सेना से एक तिहाई अधिक थी, तथापि उस पर ऐसी प्रक्रिया का होना उसकी पराजय का ही सूचक है।
     यह भी कहा जा सकता है कि कौरवों का पक्ष अन्याय का पक्ष था, इसलिए उनके हृदयों का कांप जाना अस्वाभाविक नहीं है। अपराधी हृदय ऐसा ही डरा करता है। पांडवगण सत्य और न्याय के लिए युद्ध कर रहे थे, और जहां सत्य और न्याय है, वहां निर्भीकता है। फिर, यह भी संभव है कि कौरवों ने यह कल्पना न की हो कि पांडव 13 वर्षों तक निर्वासित रहने के बावजूद इतनी बड़ी सेना इकट्ठी कर लेंगे। कौरवों ने जान तो लिया था कि पांडवों ने सात अक्षौहिणी सेना खड़ी कर ली है, पर उन्हें इसकी विशालता का बोध तब हुआ, जब पांडव पक्ष ने कौरवों की चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध का बिगुल बजाया। और इस बोध ने उन्हें भयभीत कर उनका हृदय विदीर्ण कर दिया।

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