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गीताध्याय -2, श्लोक -12

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जीव की नित्यता


न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।। (12)

जातु - किसी काल में
अहम् - मैं
न - नहीं
आसम् - था ( और )
त्वम् - तू
न - नहीं ( था )
इमे - ( तथा ) ये
जनाधिपाः - राजा लोग
न - नहीं ( थे )
न, तु, एव - यह बात भी नहीं है;
च - और
अतः - इसके
परम् - बाद ( भविष्य में )
वयम् - ( मैं, तू और राजा लोग ) हम
सर्वे - सभी
न - नहीं
भविष्यामः - रहेंगे,
एव - ( यह बात ) भी
न - नहीं है।

"मैं किसी काल में नहीं था ऐसा नहीं, तू कभी नहीं था ऐसा भी नहीं, ये राजा लोग कभी नहीं थे ऐसा भी नहीं, और इसके बाद भी हम सब न होंगे ऐसा भी नहीं है ( अर्थात हम पहले भी थे, इस समय हैं और आगे भी होंगे )"


    श्रीभगवान् यहां पर कारण उपस्थित करते हैं कि राजा गण शोक करने योग्य क्यों नहीं है। गीता का उपदेश आत्मस्वरूप के ज्ञान से प्रारंभ होता है, क्योंकि एकमात्र आत्मा का ज्ञान ही अज्ञान-भ्रम से उत्पन्न शोक को दूर कर सकता है। भगवान् इस श्लोक में जीव की नित्यता प्रदर्शित करते हैं। ईश्वर तो नित्य है ही, और जीव भी ईश्वर स्वरूप होने के कारण नित्य हैं। जीव की यह ईश्वरस्वरूपता अभी शरीर आदि घेरे के कारण अप्रकट है, पर जिस समय साधक शरीर और मन द्वारा लादी गई परिच्छिन्नता को भेद कर ऊपर उठता है, तो देखता है कि वह तो स्वरूपतः आत्मा ही है। अतः इस परिच्छिन्नता को दूर करना है, जो देहाभिमान आदि से उत्पन्न होती है। इस परिच्छिन्नता को दूर करो तो देखोगे, जैसे तुम अभी वर्तमान में अस्तित्वमान हो, उसी प्रकार पहले भी इस जीवन को प्राप्त करने से पूर्व भी अस्तित्व में थे और भविष्य में भी इस देह के नष्ट हो जाने के उपरांत भी अस्तित्व में रहोगे। मैं जैसे वर्तमान में दिखाई देता हूं, वैसे ही अतीत में भी था और भविष्य में भी रहूंगा। ये राजागण जैसे अभी हैं, वैसे ही पहले भी थे और बाद में भी रहेंगे। नित्यता का लक्षण है जो तीनों कालों में रहे। अपना, अर्जुन का और राजाओं का अस्तित्व तीनों कालों में बताकर श्रीभगवान् जीव की नित्यता घोषित कर रहे हैं और इस प्रकार राजाओं के भी अशोच्य होने का कारण प्रस्तुत कर रहे हैं।

जीवन : एक प्रवाहमान नदी

      गीता के द्वारा यहां पर जीवन क्रम की अनादिता और अनंतता प्रदर्शित की गई है। जीवन एक प्रवाहमान नदी के समान है। हम एक स्थान पर खड़े होकर किसी नदी को देखते हैं। कितना भाग देख पाते हैं? संभव है 100 गज की लंबाई मात्र को। उसके न पहले का भाग दिखाई देता है, न बाद का। पर इसका मतलब यह नहीं कि नदी मात्र 100 गज लंबी है। जहां से नदी का दिखना शुरू होता है, उसके पहले भी वही नदी है, पर आंखें उस भाग को नहीं देख पातीं। इसी प्रकार जहां तक नदी दिखाई दे रही है, उसके आगे भी वही नदी है, पर आंखें अपनी दृष्टि शक्ति की सीमा के कारण आगे के भाग को नहीं देख पातीं। यह जीवन भी उसी प्रकार सतत प्रवाहमान एक सरिता है। जिस दिन हम पैदा हुए, उसके पहले के भाग को और जिस दिन हम मृत्यु की गोद में अदृश्य हो जाते हैं, उसके बाद के भाग को हम नहीं देख पाते। पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि वर्तमान जीवन के पहले यह जीवन नहीं था, या की वर्तमान जीवन के बाद यह जीवन ही नहीं रहेगा। दृष्टिशक्ति की परिच्छिन्नता के कारण हम अतीत और आगामी जीवनों को नहीं देख पाते। दृष्टि शक्ति की यह परिच्छिन्नता देह और मन के परदे के कारण बनती है। जो इस पर्दे को थोड़ा उठा लेने में समर्थ है, वे जीवन की नित्यता को देख पाते हैं। उनके लिए काल के तीनों भेद समाप्त हो जाते हैं। किसी किसी के जीवन में यह परदा अपने आप कुछ समय के लिए अचानक हट जाता है और वे अतीत के जीवन को देखने में समर्थ हो जाते हैं। हमनें ऐसी कई घटनाएं सुनीं और पढी होगीं, जहां एक छोटा सा बालक अपने पूर्व जन्म की बातों का स्मरण करने लगा है और जांच पड़ताल से उसकी बातें सत्य सिद्ध होती है। यदि जीवन में नित्यता न होती, तो उस बालक की बातें कैसे सत्य होती? आजकल जो लोग 'पैरासाइकोलॉजी' के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हैं, वे ऐसी घटनाओं को extr-asensory perception ( इन्द्रियातिरिक्त दर्शन ) के नाम से पुकारते हैं। पर कोई नामकरण किसी बात का स्पष्टीकरण नहीं होता। यदि यही मान लें ऐसी घटना extr-asensory perception का परिणाम है, तो प्रश्न उठता है उसी बालक विशेष के साथ यह घटना क्यों घटी? फिर यही घटना दोबारा किसी अन्य के साथ फिर से क्यों नहीं घटती? इन प्रश्नों के कोई समाधान कारक उत्तर नहीं है। अतः यह स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ता है कि जीवन नित्य है। हम इस विषय पर विशद विचार इस दूसरे अध्याय के 22 वें श्लोक की व्याख्या करते समय करेंगे।
   सब विवेचन का निष्कर्ष यही है कि जीवन में सततता है। अतएव वर्तमान जीवन के नाश के विचार से शोक नहीं करना चाहिए। अर्जुन अपने संबंधी राजाओं को शोच्य मान रहा था। भगवान कहते हैं ये राजा मेरे और तेरे समान पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। शरीर की दृष्टि से वे नश्वर और काल में बंधे हुए हैं, पर आत्मा की दृष्टि से वे अविनाशी और शाश्वत हैं। अतएव उनके लिए शोक न कर।

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