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गीताध्याय -1, श्लोक -4/5/6

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#गीता 

पाण्डवों के विशिष्ट योद्धाओं के नाम तथा परिचय

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित् कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।

अत्र - यहाँ ( पाण्डवों की सेना में )
शूराः - बड़े-बड़े शूरवीर हैं,
महेष्वासाः - ( जिनके ) बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं
च - तथा ( जो )
युधि - युद्ध में
भीमार्जुनसमाः - भीम और अर्जुन के सामान हैं ( उनमें )
युयुधानः - युयुधान ( सात्यकि )
विराटः - राजा विराट
च - और
महारथः  - महारथी
द्रुपदः - द्रुपद ( भी हैं ।)

धृष्टकेतुः - धृष्टकेतु
च - और
चेकितानः - चेकितान
च - तथा 
वीर्यवान् - पराक्रमी 
काशिराजः - काशिराज ( भी हैं। )
पुरुजित् - पुरुजित्
च - और
कुन्तिभोजः - कुन्तिभोज ( ये दोनों भाई )
च - तथा
नरपुङ्गवः - मनुष्यों में श्रेष्ठ 
शैब्यः - शैब्य ( भी हैं ।)

विक्रान्तः - पराक्रमी
युधामन्युः - युधामन्यु
च - और
वीर्यवान् - पराक्रमी
उत्तमौजाः - उत्तमौजा ( भी हैं ।)
सौभद्रः - सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु
च - और
द्रौपदेयाः - द्रौपदी के पाँचों पुत्र ( भी हैं। )
सर्वे, एव - ( ये ) सब-के-सब
महारथाः - महारथी हैं।
     यहां 'शूरा महेष्वासा महारथाः' ये तीन विशेषण सभी योद्धाओं के लिए समान रूप से प्रयुक्त हुए हैं| साथ ही साथ कुछ योद्धाओं की अलग से विशेषता बताई गई है| दुर्योधन इन विशेषणों के द्वारा आचार्य द्रोण पर यह प्रभाव डालना चाहता है कि पांडवों की सेना को हमारे सैन्य से किसी भौतिक कम शक्तिशाली न समझा जाए।
      दुर्योधन कहता है -'भीम और अर्जुन के समान'| इससे ध्वनित होता है कि वह भीम और अर्जुन को महान बलशाली समझता था तथा पांडवों की ओर इन्हीं दोनों को प्रमुख योद्धा मानता था| भीम के जन्म के समय आकाशवाणी हुई थी कि यह कुमार समस्त बलवानों में श्रेष्ठ है| जन्म के दसवें दिन ये माता की गोद से एक शिलाखंड पर गिर पड़े और उनके शरीर की चोट से वह शिला चूर-चूर हो गई|  फिर कौरवों की सभा में जब द्रोपति का अपमान हुआ, तो भीमसेन ने दुःशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्त पीने की भीषण प्रतिज्ञा की थी तथा दुर्योधन की जाँघ तोड़ देने की भी भयंकर घोषणा की थी| इसलिए दुर्योधन भीम से भीतर ही भीतर बहुत डरता था| अर्जुन तो महान पराक्रमी थे ही| अकेले ही उन्होंने मंत्रियों सहित द्रुपद को पराजित किया था और उन्हें बंदी बनाकर द्रोणाचार्य को सौंपा था, जबकि दुर्योधन समेत सारे कौरव द्रुपद से हार कर भाग निकले थे| उसी प्रकार जब पांडवों के अज्ञातवास के समय कौरवों ने विराट नगर पर धावा किया, तो अकेले अर्जुन ने ही कौरव सेना का संहार कर उसे खदेड़ दिया| दुर्योधन यह सब भली भांति जानता था, क्योंकि वह भुक्तभोगी था| इसीलिए उसके मुख से 'भीमार्जुनसमाः' शब्द निकलता है| भीम और अर्जुन उसकी आंखों के सामने काल के समान नाचते रहते हैं।
       महाभारत में वीरों की चार श्रेणियां बताई गई है -'अतिरथी, महारथी, रथी और अर्धरथी| कुछ लोगों के अनुसार अतिरथी और महारथी पर्यायवाची शब्द हैं और एक ही अर्थ की अभिव्यंजना करते हैं| महारथी उसे कहा गया है जो अकेले ही 10000 धनुर्धारी योद्धाओं से लड़ने की क्षमता रखता है| अतिरथी वह है जो 10000 से भी अधिक योद्धाओं से अकेले मुठभेड़ ले सकता है| 'रथी' वह है जो 1000 योद्धाओं से अकेले लड़ ले| 'अर्धरथी' की श्रेणी इससे भी नीचे है।
     युयुधान का दूसरा नाम सात्यकि है| यह वृृष्णिवंशी शिनीकुमार सत्यक के पुत्र हैं। श्री कृष्ण के मतानुसार सात्यकि एक अतिरथी वीर हैं। भीष्म उन्हें रथयूथपों का यूथप मानते हैं और बड़ा ही सहनशील तथा निर्भीक समझते हैं। वह एक अक्षौहिणी सेना लेकर युधिष्ठिर के पास आए थे।
      विराट मत्स्यदेश के राजा हैं और उत्तरा के पिता हैं। ये शंख और उत्तम नामक अपने पुत्रों तथा सूर्यदत्त और मदिराक्ष इत्यादि वीरों के साथ एक अक्षौहिणी सेना लेकर महाभारत युद्ध के लिए आए थे। भीष्म के मतानुसार ये बूढ़े होने पर भी युद्ध में अजय थे तथा बड़े पराक्रमी और एक महारथी थे।
    द्रुपद पांचाल देश के राजा हैं। इन्हें गीता में ही महारथी का विशेषण दिया गया है। यह अपने 10 पुत्र सत्यजीत और धृष्टद्युम्न आदि के सहित एक अक्षौहिणी सेना लेकर आए थे। ये यद्यपि वृद्ध हो चले हैं तथापि भीष्म इन्हें भी युद्ध में अजेय मानते हैं और महान पराक्रमी तथा महारथी की संज्ञा देते हैं।
      धृष्टकेतु शिशुपाल के पुत्र हैं और चेदि देश के राजा। भीष्म के मतानुसार यह बड़े ही वीर और धनुर्धर हैं एवं एक महारथी हैं। ये भी एक अक्षौहिणी सेना लेकर युद्ध में आए थे।
     चेकितान अंधकवंशीय यादव हैं तथा संजय की दृष्टि से एक महारथी हैं। भीष्म इन्हें बड़े अच्छे रथी मानते हैं। ये भी एक अक्षौहिणी सेना लेकर युधिष्ठिर के पास आए थे।
     काशीराज भीमसेन के ससुर थे। इन्हें गीता में वीर्यवान् का विशेषण दिया गया है। संजय के मतानुसार ये एक महारथी है। भीष्म इन्हें 'शस्त्र चलाने ने बड़ा फुर्तीला और शत्रुओं का संहार करने वाला' मानते हैं तथा इन्हें साधारण अवस्था में एक रथी की संज्ञा देते हैं, किंतु यह भी कहते हैं कि युद्ध में पराक्रम करते समय ये 8 रथियों के बराबर हो जाते हैं।
     पुरुजित् और कुन्तिभोज यह दोनों सगे भाई हैं और राजा कुन्तिभोज के पुत्र हैं। कुछ व्याख्याकार 'पुरुजित् कुन्तिभोज' को एक ही व्यक्ति का नाम मानते हैं। पर महाभारत में हमें पुरूजित और कुंन्तिभोज दोनों के अलग-अलग विवरण प्राप्त होते हैं। कुंती इन दोनों के पिता राजा कुन्तिभोज द्वारा दत्तक ली गई थी, अतएव वे इन दोनों की बहिन हुई और यह दोनों पांडवों के मामा हुए। कुंती यदुवंशी शूरसेन की पुत्री थी। तब इनका नाम पृथा था। वसुदेव शूरसेन के पुत्र और पृथा के भाई थे। राजा कुन्तिभोज शूरसेन की बुआ के पुत्र थे। वे सन्तानहीन थे, इसलिए शूरसेन ने पृथा को राजा कुन्तिभोज को गोद दे दिया था। तब से पृथा कुंती के नाम से परिचित हुई।
    पुरुजित् भीष्म पितामह की दृष्टि में महाधनुर्धर और अत्यंत बलवान थे। वह पुरूजित को एक अतिरथी मानते थे। भीष्म ने पुरुजित् के अन्य जो विशेषण लगाए हैं, वह हैं -'वीर', 'महेष्वास', 'कृती', 'निपुण', 'चित्रयोथी', 'शक्र' तथा 'रथपुंगव'। पुरुजित् के भाई कुन्तिभोज भी अच्छे योद्धा थे। उन्होंने पांडवों की ओर से अनेक महत्वपूर्ण स्थानों में खड़े होकर युद्ध किया था। ये द्रोणाचार्य के हाथों मारे गए थे।
      शैव्य शिबि देश के नरेश हैं और युधिष्ठिर के श्वसुर हैं। दुर्योधन ने इनकी गणना पांडव सेना के महान धनुर्धरों में की थी। गीता में इन्हें नरश्रेष्ठ का विशेषण दिया गया है।
      युधामन्यु और उत्तमौजा पांचाल देश के राजकुमार थे तथा क्रमशः अर्जुन के बाएं और दाहिनी चक्र रक्षक थे। भीष्म उत्तमौजा को अच्छा रथी और युधामन्यु को उत्तम रथी मानते हैं। गीता में युधामन्यु और उत्तमौजा के लिए क्रमशः 'विक्रांत' और 'वीर्यवान' का विशेष विशेषण लगाया गया है।
      सौभद्र अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र हैं। यह अभिमन्यु के नाम से परिचित हैं। भीष्म पितामह इन्हें रथयूथपों के युथों का भी अध्यक्ष मानते हैं तथा युद्ध में इन्हें अर्जुन और कृष्ण की बराबरी का समझते हैं। संजय की दृष्टि में अभिमन्यु वीरता में श्री कृष्ण के समान तथा संयम में महाराज युधिष्ठिर के समान है।
    द्रोपदी के प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक तथा श्रुतसेन ये पांचों पुत्र भीष्म की दृष्टि में महारथी हैं।

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