गीता गायक कृष्ण
हम कहते आए हैं कि कृष्ण युगाचार्य हैं। वह महान क्रांतिकारी हैं। उनकी कथनी और करनी में कोई पार्थक्य नहीं है। जैसा उपदेश करते हैं वैसा ही आचरण भी। उन्होंने अर्जुन को द्वन्द्वों में बुद्धि को समतौल करने के लिए कहा। वह स्वयं इसके उदाहरण है। कृष्ण का जीवन उनके उपदेशों पर भाष्य है। जहां कहीं मैं गीता के विषय में किसी श्लोक को समझने में असमर्थ होता हूं, तो कृष्ण के चरित्र की ओर देखता हूं कि उन्होंने वैसी परिस्थितियों में क्या किया। बस, उस श्लोक का मर्म मेरी आंखों के सामने स्पष्ट हो जाता है। तो, मैं कह रहा था कि कृष्ण का जीवन उनके उपदेशों की प्रांजल टीका है। जरा देखें कृष्ण को। अर्जुन कहता है मैं युद्ध नहीं करूंगा। सुनकर कृष्ण विचलित नहीं होते। उनके अधरों पर वही स्मित है, जो गोपियों को देखकर प्रकट होता था। वे उसी कोमलता और साथ ही दृढता के साथ अर्जुन को समझाते हैं, जिस कोमलता के साथ वंशी में धुन फूंकते थे और जिस दृढ़ता के साथ बांसुरी के पोरों पर अपनी उंगलियों को नचाते थे। वे कोमल है, और कठोर भी। तभी तो कवि गाता है-
प्रपन्नपारिजाताय तोत्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे नमः।।
-'हे भक्त कल्पद्रुम! हे दण्डपाणि! हे ज्ञान मुद्रा धारी कृष्ण! हे गीतामृत दोहनकर्ता! तुम्हें प्रणाम है।'
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
-'कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले, देवकी को परम आनंद देने वाले, वसुदेव नंदन, देवदेव, जगतगुरु श्रीकृष्ण कि मैं वंदना करता हूं।'
कृष्णा कल्पद्रुम कोमल हैं, वह दंड कठोर भी, भक्तजन सुलभ है, वह कठोर ज्ञान मुद्रा धारी भी! वे वसुदेव देवकी के लिए कोमल वपु अन्नदाता है, तो कंस और चाणूर के लिए कठोर मर्दनकारी भी! तभी तो पांडवों को जैसा निश्छल प्यार दिया, वैसा कौरवों के लिए वह अभिशाप भी बने। कौरवों के घोर भंवर से पांडवों की विजय नौका को बचाकर पार ले गए। वे तो भक्तजनों को पार ही तार उतारा करते हैं। जो भी उनकी शरण में जाता है, उसका हाथ थाम लेते हैं और उसकी तरी को निर्विघ्न उस पार पहुंचा देते हैं। कवि कहता है-
भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला।
शल्यग्राहवती कृपेण वहनी कर्णेन वेलाकुला।
अश्वत्थामविकर्णघोरमकरा दुर्योधनावर्तिनी।
सोत्तीर्णा खलु पाण्डवै रणनदी कैवर्तकः केशवः।।
-'जिस समरनदी के भीष्म और द्रोण दो तट है, जिसका जल जयद्रथ है, जिसमें गांधारराज नीलकमल है, शल्य ग्राह है, कृपाचार्य धारा है, कर्ण ऊर्मियां है, अश्वत्थामा और विकर्ण भयंकर मकर है, दुर्योधन भंवर है, उसे पांडवों ने केशव केवट की सहायता से पार कर लिया।'
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