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महाभारत का काल निर्णय
एक प्रश्न और आज से कितने वर्ष पूर्व गीता का प्रादुर्भाव हुआ होगा? हम पहले ही कह चुके हैं कि गीता महाभारत का अंश है। अतः महाभारत का रचनाकाल गीता का भी रचनाकाल है। महाभारत ग्रंथ के अनुसार हमें विदित होता है कि उसका स्वयं का निर्माण काल युद्ध के 50 वर्ष बाद ही है। आदि पर्व में लिखा है जब युद्ध समाप्त हो गया और धृतराष्ट्र स्वर्ग चले गए, उसके बाद महर्षि व्यास ने अपना महाभारत ग्रंथ प्रकट किया। इससे प्रतीत होता है कि धृतराष्ट्र के जीते जी यदि व्यास महाभारत के माध्यम से दुर्योधन की अन्यायपरता और हठवादिता को प्रकट कर देते, तो देश राष्ट्र को मार्मिक पीड़ा होती। व्यास नहीं चाहते थे कि भाग्यहीन और दुखी धृतराष्ट्र को और अधिक पीड़ा पहुंचाई जाए। इसलिए उन्होंने धृतराष्ट्र की मृत्यु के उपरांत अपना ग्रंथ प्रकाशित किया। धृतराष्ट्र की मृत्यु महाभारत युद्ध के 25-30 वर्ष बाद ही सिद्ध होती है। इससे यह अनुमान करना सुसंगत है कि महाभारत ग्रंथ युद्ध के प्रायः 50 वर्ष बाद प्रकट हुआ होगा। महाभारत युद्ध का काल निर्णय करने के लिए हमें महाभारत ग्रन्थ के संबंध में कुछ विवेचना करनी होगी।
महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि उसमें 100000 श्लोक हैं। काल प्रवाह के कारण इस संख्या में कुछ न्यूनाधिकता अवश्य हो गई है, क्योंकि आज जो महाभारत ग्रंथ हमें प्राप्त है, उसमें हरिवंश के श्लोकों को मिलाने पर भी संख्या एक लाख तक नहीं पहुंचती। तथापि यह तो माना ही जा सकता है कि जब भारत से महाभारत तैयार किया गया होगा, तो उसका कलेवर 100000 श्लोकों वाले महाभारत जैसा ही हुआ होगा। कहते हैं कि भारत में 24000 श्लोक थे। इसमें केवल भारतवंशियों की कथा थी। दूसरे उपाख्यान इसमें नहीं लिए गए थे। महाभारत में एक श्लोक आता है (आदिपर्व, 1/102)
चतुर्विंशतिसाहस्रीं चक्रे भारतसंहिताम्।
उपाख्यानैर्विना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः।।
इसी भारत का विस्तार एक लक्ष श्लोकों वाले महाभारत में किया गया। कहते हैं कि विस्तार कर्ता सौति उग्रश्रवा थे, जिन्होंने भारत में कई आख्यान और उपाख्यान जोड़ दिए।
महाभारत के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि उसका नाम एक नाम 'जय' भी है। वह इस लोक ऐसा है-
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।
यहां पर लेखक 'जय' यानी महाभारत की रचना के पहले श्री कृष्ण के रूप में नारायण को नमस्कार करते हैं, फिर वह नारायण के लीला सहायक नर रूप नरोत्तम अर्जुन को नमस्कार करते हैं और अंत में देवी सरस्वती को, जिन्होंने गिरा दी, वाणी दी, शब्द दिये।
एक दूसरी परंपरा कहती है कि 'जय' और 'महाभारत' एक नहीं है, वे दोनों अलग-अलग हैं। इस परंपरा का कथन है कि महाभारत सर्वप्रथम 8000 श्लोकों का बना। उसके रचयिता स्वयं वेदव्यास थे और उसका नाम 'जय' था। उनके शिष्य वैशंपायन में इसका विस्तार 24000 श्लोकों वाले ग्रंथ में किया और उसका नाम पड़ा 'भारत'। फिर बाद में सौति उग्रश्रवा ने उस 'भारत' में कई आख्यान उपाख्यान जोड़कर इसका कलेवर 100000 श्लोक का बना दिया और उसी का नाम हुआ 'महाभारत'। पर यह बात कुछ ठीक मालूम नहीं पड़ती। भिन्न-भिन्न सूत्रों से जो तथ्य प्राप्त होते हैं उनसे यही विदित होता है कि मूल कृत महाभारत ही था, जिसमें 100000 श्लोक थे। उसी को 'जय' के नाम से भी जाना जाता था। उसमें से विभिन्न कहानियों और आख्यायिकाओं को निकालकर 24000 श्लोक वाला एक भ्रम ग्रंथ बना लिया गया। जिसे 'भारत' के नाम से पुकारा गया। महाभारत के अनुक्रमणिका अध्याय में एक श्लोक हैं (101) जिसमें कहा गया है कि आद्य भारत तो एक लक्ष श्लोकों वाला ग्रंथ ही है-
इदं शतसहस्रं तु लोकानां पुण्यकर्मणाम्।
उपाख्यानैः सह ज्ञेयम् आद्यं भारतमुत्तमम्।।
हम महाभारत में ही पढते हैं कि उसकी रचना के लिए व्यासदेव को 3 वर्ष लगे, और वह भी तब, जब उन्हें गणेश जी के समान आशुलिपिक मिले। यदि मूल महाभारत 8000 या 24000 श्लोकों वाला होता, तो सोचने की बात है कि उसे लिखने के लिए 3 वर्ष की क्यों आवश्यकता होती, और फिर उसके लेखन के लिए आशुलिपिक का क्यों प्रयोजन होता?
आपको वह कथा मालूम होगी। जब व्यासदेव को महाभारत लिखने की प्रेरणा हुई, तो वह एक ऐसे लिपिक की तलाश में थे, जो उनकी वाणी को चटपट लिखता जाए। गणेश जी अपनी सेवा देने के लिए राजी हो गए, पर उन्होंने व्यास से कहा, "विद्वन्! मै लेखन का कार्य अपने ऊपर लेने के लिए तैयार हूं, पर एक शर्त है। यदि आप इस शर्त को पूरा करें, तो मैं कार्यभार संभाल सकता हूं।" व्यासदेव ने पूछा, "भाई, अपनी वह शर्त कौन सी है?" गणेश जी बोले "मेरी लेखनी कहीं पर रुकनी नहीं चाहिए। आप मुझे इस प्रकार लिखाते रहे कि तनिक देर के लिए भी मेरी लेखनी को विराम प्राप्त ना हो। यदि यह शर्त आप स्वीकार करते हैं, तो मैं लेखन का कार्य कर सकता हूं।" व्यास ने इस पर कहा "गणेश जी! आपकी बात मुझे मान्य है' पर इसके साथ मैं भी एक शर्त आपके सामने रखता हूं।" "कौन सी शर्त?" गणेश जी ने पूछा। व्यास बोले "जो भी आप लिखेंगे, बिना समझे हुए नहीं लिखेंगे। यदि आप मेरी इस शर्त को स्वीकार करते हैं, तो मुझे भी आपकी सर्वमान्य है।" गणेश जी ने व्यासदेव की शर्त मान ली और दोनों लिखाने और लिखने बैठे। ज्यों-ज्यों व्यासदेव की वाणी से शब्द जरते, गणेश जी शीघ्र ही उनको लिपिबद्ध कर लेते। व्यास जी ने अनुभव किया कि इसी प्रकार यदि चलता रहा, तो वह हार जाएंगे, क्यों कि छन्दों और श्लोकों की धारा प्रवाह रचना करना आसान काम नहीं है। फिर श्लोकों में आगे पीछे की बात सोचकर पूर्वापर संबंध बिठाना पड़ता है। इन सबके लिए तो समय चाहिए। अतः व्यास जी ने युक्ति की। हर 10-12 श्लोक के बाद वे एक ऐसा श्लोक बना देते। जिस को समझने के लिए गणेश जी को सिर खुजलाना पड़ता और उनकी लेखनी थम जाती। इस बीच व्यासदेव आगे के श्लोकों की रचना कर लेते। उन श्लोकों को जिन्हे समझने के लिए गणेश जी को भी समय लगता है, कूट श्लोक कह कर पुकारा गया है। महाभारत में लिखा है इन कूट श्लोकों की संख्या 8800 है। इसके संबंध में भगवान व्यास कहते हैं, "ये जो महाभारत के कूट श्लोक हैं उन्हें मैं जानता हूं और मेरे पुत्र शुकदेव जानता है। संजय जानता है या नहीं इसमें संदेह है।" -'संजयो वेत्ति वा न वा।' कुछ विद्वान 'वा न वा' को एक शब्द 'वनवा' मानते हैं और प्राचीन कोश के अनुसार उसका अर्थ चतुर करते हैं -'वानवा चतुरः पुमान्।' इस प्रकार वे उक्त पद्य का अर्थ करते हैं कि 'संजय जानता है और चतुर पुरुष भी जानते हैं'। अतः कूट श्लोक वह हैं जिन्हें व्यास, शुक, संजय तथा चतुर पुरुष ही समझते हैं। पर अभी तक निश्चय पूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि महाभारत के वह 8800 श्लोक कौन से हैं, जिनको समझने के लिए गणेश जी को भी लेखनी रख देनी पड़ी थी। यह शोध के लिए एक अच्छा विषय हो सकता है।
हमने ऊपर कहा कि महाभारत में हमें तीन स्तर प्राप्त होते हैं। हमें इसके वक्ता और श्रोता की भी 3 जोड़ियां प्राप्त होती है। सर्वप्रथम जोड़ी तो व्यास मुनि और गणेश जी की है, दूसरा युग्म वैशंपायन और जनमेजय का है, तथा तीसरी जोड़ी सूत लोमहर्ष और शौनक की है। कुछ लोग कहते हैं कि वैशंपायन और जनमेजय के परस्पर प्रश्न उत्तर रूप श्लोक तथा सूत और शौनक के परस्पर संवाद के श्लोकों को जोड़कर सूत पुत्र उग्रश्रवा ने महाभारत को वर्तमान रूप दिया। यह सत्य है कि प्राचीन ग्रंथों में हमें भारत और महाभारत ऐसे 2 नाम प्राप्त होते हैं। अतः यदि उग्रश्रवा को ही महाभारत को वर्तमान रूप देने वाला मान लिया जाए, तो भी भारत और महाभारत के रचनाकार में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा। उग्रश्रवा व्यास शिष्य लोमहर्ष के पुत्र थे, अतः ऐसा माना जा सकता है कि भारत और महाभारत एक काल की ही रचनाएं हैं। दोनों में अंतर यह है कि महाभारत 100000 श्लोकों वाला ग्रंथ है, जबकि भारत में 24000 लोग हैं। इन दोनों में से कौन सा ग्रंथ पहले रचित हुआ, यह ठीक-ठीक निर्णय करना अत्यंत कठिन है।
आश्वलायन गृहसूत्र के तर्पण प्रकरण में भारत और महाभारत दोनों के आचार्यों का तर्पण लिखा है। आश्वलायन गृहसूत्र का रचना काल आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। महर्षि पाणिनि के ग्रंथ से पता चलता है कि वह भी महाभारत से परिचित थे। प्राचीन शिलालेख में भी महाभारत के लिए 'शतसाहस्री संहिता' लिखा मिलता है। वैदेशिक यात्री डियोन्क्रायस्टो स्टोन भी रखता है कि महाभारत में 100000 श्लोकों का इतिहास निबद्ध है।
इन सबके अलावा, काल निर्णय के लिए नक्षत्र आज की स्थिति का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। पर यह एक जटिल विज्ञान है, जिसमें केवल तज्ञों की गति होती है। लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य में इस दृष्टि से भी सूक्ष्म विवेचन किया है।
इन सब तथ्यों को एकत्र करने पर आदि महाभारत का रचना काल आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व निर्णीत होता है। और चुंकि गीता महाभारत के प्रथम स्तर में ही सम्मिलित थी, इसलिए बिना किसी विशेष बाधा के यह स्वीकार किया जा सकता है कि गीता का उद्गीरण आज से 5000 वर्ष पूर्व हुआ होगा।
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