निष्काम कर्म का तात्पर्य
गीता कहती है कि फल के चिंतन में अपने समय और शक्ति का नाश मत करो। फल तो तुम्हें मिलेगा ही। जो समय और शक्ति तुम फल के चिंतन में लगाते हो, उसका उपयोग तुम कर्म करने में करो। गीता का यही तत्वज्ञान है। गीता कहती है कि अपना पूरा समय और अपनी सारी शक्ति कर्म में लगा दो। फल का चिंतन मत करो। जब तुम बेहतर काम करोगे, तो तुम्हें कर्म के अटल सिद्धांत से बेहतर फल मिलेगा। इसलिए प्रभु समर्पित भाव से अपने दैनिक जीवन के कर्म करते हुए कहो,- प्रियतम, मेरे सभी कर्म तुम्हारी पूजा बन जाएं, मैं खेत खलिहान में जाता हूं, रसोई का काम करता हूं, दफ्तर और बाजार जाता हूं, मेरे यह सभी कर्म तेरी पूजा ही पूजा है। जब यह भाव दृढ़ होता है, तब जीवन में गीता का योग अवतरित होता है।
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