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प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण देवताओं का उद्भव

प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण देवताओं का उद्भव

     प्रारंभिक मानव प्रकृति की शक्तियों की पूजा किया करता था। यह मानव का स्वभाव है कि वह अपने से बली शक्तियों की पूजा करता है जब वह देखता है कि वह किसी शक्ति पर आधिपत्य प्राप्त करने में सफल नहीं होता तो वह उसकी पूजा करने लगता है। वेद मानव के मन की विकास गाथा है मनुष्य का मन क्रमशः जिन तूफानों में से विकसित होता गया है वेद उनकी सुंदर कहानी कहते हैं। वेदों में पहले हम ऐसे मन को देखते हैं जो अभी अविकसित है फिर वह धीरे-धीरे अपना विकास करता है और कालांतर में विकास की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लेता है। इसीलिए मैं वेदों को मानवीय मन के विकास की गाथा कहता हूं।
प्रारंभिक काल में मनुष्य प्रकृति की शक्तियों से डरा करता था वह देखता था कि जब जोर की आंधी आती है तो वृक्ष टूट कर गिर पड़ते हैं, झोपड़िया गिर जाती हैं, और धन नष्ट हो जाता है। प्रारंभिक मनुष्य ने कल्पना की कि हो ना हो यह आंधी कोई शक्ति है उसने उस सत्य का मानवीकरण किया यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह जिसकी पूजा करता है उसे मानवीय रूप प्रदान कर देता है वह ईश्वर को भी मानवीय रूप दे देता है और उसे समस्त मानवीय गुणों से युक्त कर देता है इसका कारण यह है कि मनुष्य की कल्पना उसके अपने मन से मर्यादित है। यदि कोई मछली ईश्वर की कल्पना करें तो वह ईश्वर को बहुत बड़ी मछली के रूप में देखेगी, यदि कोई भैंस ईश्वर की कल्पना करें तो ईश्वर को वह बहुत बड़ी भैंस के रूप में सोचेगी, इसी प्रकार यदि कोई पक्षी ईश्वर के बारे में सोचें तो उसकी कल्पना में ईश्वर एक बहुत बड़े पक्षी का रूप धारण करेगा। अतः जब मनुष्य ईश्वर की कल्पना करता है तो वह उसे मानवीय गुणों से युक्त कर देता है यह मनुष्य का स्वभाव है।
जब आदिम मानव ने आंधी की प्रचंडता का अनुभव किया, तो उसने कल्पना की कि यह एक मनावोपरि शक्ति है इसे उसने "मरुत्" कह कर पुकारा उसने सोचा कि मरुत एक देवता है वह जब मनुष्यों पर खुश होता है तब उन्हें प्राण प्रदान करता है और जब कुपित हो जाता है तब उनके प्राण ले लेता है। इसलिए वेदों में मरुत की स्तुति करते हुए कहा गया है। हे मरूत हम तुम्हारी उपासना करते हैं हमें जो वस्तु सुंदर और प्रिय लगती हैं वह हम तुम्हें प्रदान करते हैं तुम हम पर कृपा करो आंधियों को मत भेजो। इस प्रकार वेदों की ऋचाओं का जन्म होता है। मनुष्य ने देखा कि जब अग्नि कुपित होती है तो सारा कबीला जलकर राख हो जाता है सारी संपत्ति स्वाहा हो जाती है इसलिए उसने सोचा कि अग्नि एक देवता है जब वह संतुष्ट होता है तब हमारी रक्षा करता है। इसलिए अग्नि की स्तुति में ऋचाएं बनाई गई। इसी प्रकार उसने देखा कि जब जोरो से वर्षा होती है तब संपत्ति और फसल नष्ट हो जाती है उसमें कल्पना की की वर्षा का भी एक देवता है इस देवता को उसने "वरुण" कह कर पुकारा इस प्रकार वेदों में हम विभिन्न देवताओं का आविर्भाव देखते हुए देखते हैं। प्रकृति की विविध शक्तियों को मानवीय रूप देने के कारण ही देवताओं का जन्म हुआ है और इनका उदय मन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया का परिणाम है।

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