महाभारत : एक विश्वकोश
गीता के रचनाकार महर्षि व्यास का यह महनीय रूप देखने के उपरांत अब थोड़ा सा विचार हम महाभारत पर भी कर लें, जिसका की गीता एक अंश है। सबसे पहले यह देखें कि इसका नाम 'महाभारत' क्यों पड़ा? उक्त ग्रंथ के आदिपर्व (1/271-74) में ही हमें इसका कारण दिखाई देता है-
एकश्चतुरो वेदान् भारतं चैतदेकतः।
पुरा किल सुरैः सैर्वैः समेत्य तुलया धृतम्।।
चतुर्भ्यः सरहस्येभ्यो वेदेभ्यो हि अधिकं यदा।
तदा प्रभृति लोकेऽस्मिन् महाभारतम् उच्यते।।
महत्त्वे च गुरुत्वे च ध्रियमाणं यतोऽधिकम्।
महत्त्वाद् भारवत्त्वाच्च महाभारतम् उच्यते।।
-'एक समय देवताओं ने इस भारत को और चारों वेदों को तराजू पर रखकर तौला, उस समय रहस्य सहित संपूर्ण वेदों से जब यह भारत महान सिद्ध हुआ, तो उसे महाभारत कहा जाने लगा। तुला पर रखने से यह महत्व और गुरुत्व दोनों में अधिक हो गया। अतः महान और भारी होने के कारण यह "महाभारत" कहलाता है।'
इस महाकाव्य की विषय वस्तु के संबंध में स्वयं कवि के मुख से ही सुनिए। वे ब्रह्मा जी को अपनी कृति के संबंध में बताते हुए कहते हैं (आदिपर्व,161-63,65-68)--
कृतं मयेदं भगवन् काव्यं परमपूजितम्।
ब्रह्मन् वेदरहस्यं च यच्चान्यत् स्थापितं मया।।
सांगोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया।
इतिहासपुराणाम् उन्मेषं निर्मितं च यत्।।
चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः।
ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह।।
न्यायशिक्षाचिकित्सा च दानं पाशुपतं तथा।
तीर्थानां चैव पुण्यानां देशानां चैव कीर्तनम्।।
नदीनां पर्वतानां च वनानां सागरस्य च।
-'भगवन्! मैंने यह परमपूजित काव्य लिखा है। ब्राह्मन्! मैंने इसमें वेदों का रहस्य बतलाया है। वेदांग, उपनिषद और वेदों का विस्तार किया है। इतिहास और पुराणों का विस्तृत वर्णन किया है। इसमें भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों का वर्णन है। जरा, मृत्यु, भय, व्याध आदि भावों के अभाव का निश्चय किया गया है, इनके मिथ्याव का प्रतिपादन हुआ है। तीन प्रकार के धर्म और आश्रमों का लक्षण बताया गया है। चारों वर्णों की उत्पत्ति तथा तप और ब्रह्मचर्य की विधि बताई गई है। ग्रह, नक्षत्र, तारों तथा युगों का प्रमाण, न्यायशिक्षा, चिकित्सा, दान, अंतर्यामी का स्वरूप तथा दिव्य लोगों ने जन्म और मानव जन्म के कारण आदि का प्रतिपादन किया गया है। इसमें तीर्थ, नदी, पर्वत, वन, समुद्र और दिव्य नगरों का वर्णन है। दुर्ग, सेना और व्यूहरचना की विधियां तथा युद्ध की चतुराई बतलाई गई है। नाना प्रकार की जातियों का वर्णन है तथा उनके बोलने चालने के ढंग बताए गए हैं। इसमें नीतिशास्त्र का वर्णन किया गया है तथा जो सर्वव्यापी परब्रह्मतत्व है, उसका भी प्रतिपादन हुआ है।'
भगवान वेदव्यास की उपर्युक्त बातें केवल कभी कल्पना नहीं है, बल्कि वास्तव में सत्य हैं। तत्कालीन विश्व में जीवन के हर क्षेत्र में, जितनी भी बातों की कल्पना की जा सकती थीं, उन समस्त बातों का समावेश आपको महाभारत ग्रंथ में मिलेगा। चाहे युद्ध कौशल हो या तत्व चिंतन, सभी का यथासंभव विस्तार हमें इस महाकाव्य में मिलता है। धर्म और तत्व चिंतन के क्षेत्र में हमें महाभारत में इतनी विचारधाराओं के दर्शन होते हैं कि अवाक रह जाना पड़ता है। जिन दार्शनिक विचारों को हम बौद्ध दर्शन के अंतर्गत मानते हैं, वे महाभारत में बुद्ध के आविर्भाव के 2500 वर्ष पहले लिपिबद्ध किए गए दिखाई देते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि वेदव्यास मन में उठने वाली सभी प्रकार की विचार तरंगों को पकड़ने में सक्षम है। साथ ही यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि भविष्य में और कैसे-कैसे वैचारिक स्पंदन उठ सकते हैं। आज जिन्हें हम अज्ञेयवाद (Agnosticism), अनीश्वरवाद (Atheism), यथार्थवाद (Realism), क्षणभंगुरवाद (Existentialism), आदि के नाम से पुकारते हैं, वह सब हमें महाभारत में वर्णित दिखाई देते हैं, मानो कवि के द्वारा इन सब तत्वों की पूर्व कल्पना कर ली गई हो। उन कर्म सिद्धांतों की भी वहां चर्चा पाई जाती है, जिनकी बाद में जैन धर्म के सिद्धांतों के रूप में प्रसिद्धि हुई। और वहां ये सब भिन्न-भिन्न पन्थ मिलकर आपस में लड़ाई नहीं करते, बल्कि हमें अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह महाकवि की खूबी है। उन्होंने सब में समन्वय का सूत्र पिरोने का प्रयास किया है। वह मानो मधुमक्खी हैं, जो विभिन्न वर्णों और जातियों के पुष्पों से रस लाकर समन्वय रूपी मधु रस में सब का परिपाक करते हैं।
इस प्रकार महाभारत मानव एक विश्वकोश (Encyclopaedia) है। यदि आप जानना चाहते हैं कि आज से 5000 वर्ष पूर्व विश्व में कौन सी धार्मिक आस्थायें प्रचलित थी और कौन-कौन से धर्म संप्रदाय विद्यमान थे, तो महाभारत को देख लीजिए। यदि आप जानना चाहें कि तत्कालीन युग में कौन-कौनसी नदियां थी, किन किन नदियों से व्यापार वाणिज्य होता था, कौन कौन से प्रमुख राज्य और नगर थे तथा विभिन्न नगरों को जोड़ने वाले कौन कौन से रास्ते और मार्ग थे, तो महाभारत को खोल लीजिए। यदि आपकी रुचि युद्ध कला में है और आप युद्ध कला का सविस्तार वर्णन प्राप्त करना चाहते हैं, यह जानना चाहें कि लोग गदाओं और धनुष बाण से, मुष्टि प्रहार और खड्ग से किस प्रकार लड़ते थे यह जानना चाहें कि तब कितने प्रकार के प्रक्षेपास्त्र, जिन्हें हम आधुनिक विज्ञान की भाषा में मिसाइल कहते हैं, विद्यमान थे और इन प्रक्षेपास्त्रों के -वरूणेयास्त्र, अग्नेयास्त्र, ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र आदि के क्या-क्या गुण धर्म थे, तो आप महाभारत खोल कर बैठ जाइए। आपको उसमें सब कुछ मिल जाएगा।
फिर यदि आप साहित्य की दृष्टि से इस महाकाव्य को देखें, तोआपको विदित होगा कि ऐसा कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है, जो महाभारत के प्रसंग में आ सके। कवि ने मानव मन में उठने वाले सभी प्रकार के भावों का ऐसा कुशल चित्रण किया है कि दंग रह जाना पड़ता है। घटनाएं 5000 वर्ष के बाद भी आज आंखों के सामने झूलने लगती हैं। कवि सभी रसों की अभिव्यंजना करने में पारंगत है। कोई लेखक रौद्र रस को अभिव्यंजित करने में सिद्धहस्त होता है तो वह करुण रस या हास रस या शांत रस की समुचित अभिव्यंजना नहीं कर पाता। पर यहां तो महाकवि वीर, श्रृंगार, रौद्र अद्भुत, भयानक, बीभत्स और शांत इन सभी रसों की ऐसी कुशलता पूर्वक अभिव्यंजना करते हैं कि उनके मानव होने में संदेह होने लगता है।
और चरित्र चित्रण की खूबी को भी देखिए महाभारत में सैकड़ों चरित्र हैं। और उन समस्त चरित्रों के वैशिष्ट्य की रक्षा करते हुए महाकवि की काव्य धारा बहती है। साहित्य के क्षेत्र में हम उसे बड़ा लेखक मानते हैं, जो अपने सभी उपन्यास में 7-8 पात्रों का चरित्र चित्रण सफलतापूर्वक कर लेता है। पर यहां तो जैसा हमने कहा, सैकड़ों चरित्र हैं और प्रत्येक चित्रण अत्यंत सूक्ष्मता पूर्वक किया गया है। इससे लगता है कि महाभारत का लेखक एक जबरदस्त मनोवैज्ञानिक रहा होगा, जिसे मानव स्वभाव का सम्यक् ज्ञान था और जो सब प्रकार के मानव चरित्रों से परिचित था। वह मानव मन की सारी खूबियों और कमजोरियों को जानता रहा होगा। तभी तो महाभारत का प्रत्येक चरित्र मौलिक है, उसका अपना अलग अलग व्यक्तित्व है, वैशिष्ट्य है।
तो महाभारत को हमने विश्वकोश कह कर पुकारा है। स्वयं महाकवि ही अपने महाकाव्य के विश्वकोशत्व को अभिव्यंजित करते हुए कहते हैं-
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।।
-'हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के क्षेत्रों में जो बातें इसमें हैं, वही अन्यत्र भी प्राप्त होंगी और जो इसमें नहीं है, वह बाहर भी कहीं नहीं मिलेंगी।'
यह कितनी विश्वास पूर्ण घोषणा है महाकवि की! संसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार क्षेत्रों में ही बटा है। इससे भिन्न और कोई संसार नहीं। और महाकवि विश्वास पूर्वक कहते हैं कि जो कुछ इस संसार में है उस सब की जानकारी महाभारत में उपलब्ध है। वह प्रतिज्ञा पूर्वक कहते हैं "जो कुछ भी इस विश्व में जानने योग्य है, वह सब मैंने इस महाभारत में संगृहीत किया है।" साथ ही वे यह भी घोषित करते हैं कि महाभारत ही पृथ्वी की समस्त कथाओं का स्रोत है-
"अनाश्रित्य एतदाख्यानं कथा भुवि न विद्यते।" (आदिपर्व, 2/388)
"इदं कविवरैः सर्वैः आख्यानं उपजीव्यते।" (आदिपर्व, 2/389)
इसीलिए हमने महाभारत को विश्वकोश का नाम दिया, क्योंकि वह काव्य है, इतिहास है, धर्म ग्रंथ है और सर्व शास्त्र संग्रह भी है। अपरा और परा दोनों विद्याऐं अपने पूरे विस्तार के साथ इसमें विश्लेषित और संयोजित हुई है। अन्य विश्वकोशों से महाभारत रूपी यह विश्वकोश एक बात में सर्वथा भिन्न है। वह यह कि जहां अन्य विश्वकोश नीरस है, यह विश्वकोश रस ही रस से भरा है। 'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' नीरस है, उसे आदि से अंत तक पढ़ने का धैर्य किसी में नहीं है, वह मृत है, पर महाभारत जीवित ग्रंथ है। उसे जीवित, रसमय सर्वशास्त्रसंग्रह ग्रंथ बनाने के लिए भगवान व्यास ने भारत राष्ट्र की माननीय वीर विभूतियों का जीवन चरित्र बुनियाद के रूप में लिया है और इन चरित्रों के आधार पर ऐसीयुक्ति से अन्यान्य शास्त्रों का समावेश किया है कि वह बड़े ही सुंदर ढंग से सज गए हैं, मानो सुवर्ण के गाने में यथा स्थान रत्न जड़े हो। काव्य गुण रसमयी एनसाइक्लोपीडिया के साथ इतिहास को भी सम्मिलित कर देना भगवान व्यास के अद्भुत संपादन कौशल का ही वैशिष्ट्य है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया सुझाव या टिपण्णी में मर्यादा का ध्यान रखें