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गीता महाभारत का ही अंश


गीता महाभारत का ही अंश

यह गीता गायक कृष्ण का महिमामय रूप है जो महाभारत के माध्यम से हमारे समक्ष प्रकट होता है। गीता महाभारत के ही अंश रूप में हमें प्राप्त होती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह महाभारत का अंश नहीं बाद में इसकी रचना कर उसे महाभारत में डाल दिया होगा। उनके मतानुसार गीता महाभारत में छेपक है प्रक्षिप्त है। परंतु ऐसे भी धुरन्धर विद्वान हैं जो उपर्युक्त राय को नहीं मानते और कहते हैं कि गीता स्वतंत्र रूप से लिखी न जाकर, महाभारत के अंशरूप में ही लिखी गई है। अपने कथन की पुष्टि में प्रमाण देते हुए कहते हैं कि दोनों ग्रंथों की भाषाएं समान है। यदि दोनों अलग-अलग काल की रचनाएं होती, तो दोनों की भाषा में अंतर अवश्य रहता। भाषाओं का एक प्रवाह होता है। भाषाओं की अपनी एक शैली होती है। 50 वर्षों में भाषा में शैली और प्रवाह की दृष्टि से कुजः तो परिवर्तन अवश्य हो जाता है। हम अंग्रेजी भाषा को ले लें, या हिंदी को ही लें। पिछले 50 वर्षों में कितना अंतर शैली में मालूम पड़ता है। परंतु महाभारत और गीता का अध्ययन करने पर ऐसा नहीं पता चलता कि कहीं भाषा का प्रवाह बदला हो। जो हो, हमें पण्डितानां ऊहापोह में नहीं पड़ना है। हमारे लिए इतना जान लेना पर्याप्त है कि गीता महाभारत में क्षेपक नहीं है, बल्कि उसका अपना अंश है। यदि महाभारत दुग्धं है, तो गीता उसे प्राप्त नवनीत। कवि गाता है-
पाराशर्यवचः सरोजममलं गीतार्थगन्धोत्कटम्
नानाख्यानककेसरं हरिकथासम्बोधनाबोधितम्।
लोके सज्जनषट्पदैरहरहः पेपीयमानं मुदा
भूयात् भारतपंकजं कलिमलप्रध्वंसिनः श्रेयसे।
  -'व्यास के वचन रूपी सरोवर में महाभारतरूप निर्मल कमल उपजा है, जिसमें गीतार्थ की तीव्र सुरभि है, नाना आख्यानों का केसर है, जो हरि प्रसंग से पूरी तरह खिला हुआ है तथा जिसका सुजन-अलि इस लोक में मुदित होकर पान करते हैं, ऐसा या महाभारत पंकज श्रेय चाहने वालों के कलिमल का नाश करे।'
    यहां पर कवि महाभारत की उपमा कमल से देता है और गीता को उसकी सुरभि बतलाता है। एक और बात। महाभारत में हम अनेकों कहानियां और आख्यान पाते हैं। पर गीता में केवल सिद्धांतों की चर्चा है। फिर हम यह भी देखते हैं कि गीता में जिन सिद्धांतों का विवेचन हुआ है, उन्हीं को सरल ढंग से समझाने के लिए महाभारत की आख्यायिकाओं का विस्तार हुआ है। इसलिए मैं महाभारत को गीता की टीका मानता हूं। हमने पहले कहा कि गीता वेदों की उत्तम टीका है, जिसकी रचना वेदों को निःश्वसित करने वाले साक्षात भगवान करते हैं। और गीता की टीका है महाभारत। गीता का कोई भी श्लोक ले लें,  उसकी स्पष्ट और विस्तृत व्याख्या में आपको महाभारत का कोई न कोई आख्यान अवश्य मिल जाएगा। उदाहरण के लिए वह श्लोक ले लें, जहां श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।। (9/32)
  -'हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र जो भी पापयोनि के अंतर्गत माने जाते हैं, वे भी मेरा आश्रय ग्रहण कर परम गति को प्राप्त होते हैं।'

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