जीवन में उठने वाले मौलिक प्रश्न
गीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसके उपदेश हमारे रोजमर्रा के जीवन के लिए अतिशय उपादेय हैं, अर्जुन के मन में मानव जीवन को लेकर तरह तरह के प्रश्न उठ खड़े हुए थे उन प्रश्नों के भगवान श्री कृष्ण ने जो उत्तर प्रदान किए हैं, वह हमारे लिए भी अत्यंत प्रयोजनीय है, प्रश्न और उत्तर ही गीता शास्त्र का निर्माण करते हैं/
अर्जुन जीव का प्रतिनिधित्व करते हैं, हम संसार में जीवनयापन करते हैं, संसार में हमारे सामने अनेक समस्याएं आती हैं और हमारे मन में अनेक प्रश्नों का उदय होता है, हम इन समस्याओं का उत्तर पाना चाहते हैं यह हमारे जीवन की मौलिक समस्याएं हैं मनुष्य केवल रोटी से ही संतुष्ट नहीं होता यह सही है कि मनुष्य को रोटी की जरूरत होती है, उसे देने के लिए कपड़े की आवश्यकता होती है और अपना सिर छुपाने के लिए एक निवास एक छत का प्रयोजन होता है, पर जब यह जरूरतें पूरी हो जाती है तब मन के लिए खाद्य जुटाना आवश्यक हो जाता है मानसिक भोजन की पूर्ति धार्मिक संप्रदायों के द्वारा की जाती है हम देखते हैं कि संसार में अनेकानेक धर्म संप्रदायों का विकास हुआ है यह विभिन्न धर्म संप्रदाय इसलिए खड़े हुए हैं कि यह मनुष्य के मन की भूख हो तरह-तरह से मिटा सके एक ही संप्रदाय सभी लोगों के मन की भूख को नहीं मिटा सकता इसलिए विभिन्न धर्म संप्रदायों का जन्म हुआ है हम देखते हैं कि जब कोई नया संप्रदाय गठित होता है तो अनेक लोग उसके अनुयायी हो जाते हैं इसका तात्पर्य है कि पहले के संप्रदाय उनकी मानसिक भूख को शांत नहीं कर सके थे नया संप्रदाय उनकी मानसिक रोग का समाधान प्रस्तुत करता है यही कारण है कि नए नए संप्रदाय पल्लवित और विकसित होते रहते हैं,
मानव जीवन में जो जटिलताएं आ सकती हैं, मनुष्य के मन में जीवन को लेकर जो प्रश्न उदित हो सकते हैं वह जटिलताएं और प्रश्न अर्जुन के माध्यम से गीता में अभिव्यक्त है इसलिए अर्जुन को जीव का प्रतिनिधि कहा गया है भगवान कृष्ण उन प्रश्नों की मीमांसा करते हैं/
अर्जुन महाबली है नर के अवतार कहे गए हैं तथा उनका चित्रण से महनीय व्यक्ति के रूप में हुआ है पर यह अर्जुन भी संशय से ग्रस्त होते हैं जीवन की इस पहेली का क्या रहस्य है? संसार में आने जाने का यह क्रम शाश्वत है? या इसका अंत किया जा सकता है? हमारे जीवन का क्या प्रयोजन है? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो स्वाभाविक रूप से सबके मन में उठा करते हैं इन प्रश्नों का उठना बुरा नहीं है बल्कि यदि एक प्रश्न ना उठे तो समझना चाहिए कि मनुष्य की उन्नति कहीं अवरुद्ध हो रही है/
मानव जीवन क्या है? मानव जीवन इसी प्रश्न को समझाने का प्रयास है जब तक व्यक्ति के मन के प्रश्न सुलझ नहीं जाती तब तक वह आगे नहीं बढ़ पाता यह जरूरी नहीं कि हमारे प्रश्न दार्शनिक ही हो एक छोटा सा प्रश्न भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सकता है एक छोटा सा प्रश्न हमारे मन में जगा कि हमारे जीवन का प्रयोजन क्या है? तो समझ लीजिए कि प्रकृति माता की कृपा हो गई हम भले ही संसार के कर्मों में डूबकर इन प्रश्नों को भुला देना चाहते हैं पर कभी ना कभी यह प्रश्न हमारे मन में जगते हैं और हम अपने आप से पूछते हैं कि हम आखिर क्या पाना चाहते हैं? अंत में हम कहां जाएंगे? इन प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए हमारा मन व्याकुल हो जाता है केवल भारत जैसे अध्यात्म श्रवण देश के व्यक्तियों के मन में ही यह प्रश्न नहीं उठते बल्कि विज्ञान की रोशनी से चकाचौंध हुए पश्चिमी देशों की जनता के मन में भी ऐसे प्रश्न उठा करते हैं, ऐसे देश हैं जहां विज्ञान के सहारे मनुष्य प्रकृति के रहस्य में सत्य को उद्घाटित कर रहा है इन देशों में भी एक प्रश्न मनुष्य के मन में खलबली मचा रहा है, वह यह कि मानव जीवन का अभिप्राय क्या है? हमारे जीवन का प्रयोजन क्या है?
नोबेल पुरस्कार विजेता अलेक्सिस कैरल ने पुस्तक लिखी है उसका नाम है "मैन दी अननोन" इस ग्रंथ में हुए मानव मन में उठने वाले प्रश्नों का उल्लेख करते हैं वे बताते हैं कि मनुष्य के दोनों का पहला रूप तो वह है जो जाना हुआ है जो ज्ञात है और दूसरा रूप वह है जो अब तक जाना ही नहीं गया है मनुष्य का जाना हुआ रूप क्या है? यही कि उसकी लंबाई कितनी है, उसकी ऊंचाई कितनी है उसका रंग रूप और उसका बाहरी नक्शा कैसा है या मनुष्य का जाना हुआ रूप है पर यह रूप बहुत अल्प है इसके अतिरिक्त उसका अजाना रूप जो बहुत विस्तृत है हमारा बहुत सा भाग ऐसा है जो अजाना है और इस अजाने रूप को जानने की प्रक्रिया ही जीवन की प्रक्रिया है जो अजाना है उसे जानने का प्रयास ही जीवन है/
तो क्या हम अपने आपको नहीं जानते, नहीं हम अपने आपको नहीं जानते अलेक्सिस कैरल कहते हैं कि मनुष्य केवल अपने एक अंश को ही जानता है, और वह अंश अत्यंत ही छोटा या अल्प है वह अपने बहुलांश को नहीं जानता वह अजाना है इसी अजाने रूप को जानने का आह्वान उपनिषद करते हैं/
भारत में इस प्रश्न पर विचार किया गया है कि अपने आप को हम कैसे जाने अपनी इंद्रियों के सहारे हम अपने शरीर का ज्ञान प्राप्त करते हैं, हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, त्वचा से स्पर्श करते हैं, रसना सिर्फ स्वाद लेते हैं, नाक से घ्राण लेते हैं/ इन विभिन्न इंद्रियों के द्वारा हम मनुष्य के ज्ञात रूप को ही जानते हैं, पर मनुष्य का अज्ञात रूप इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता, ऋषियों ने विश्लेषण किया कि हम जितना जानते हैं, वह मन के द्वारा ही जानते हैं पर मन को हम नहीं जानते मन में विचार उत्पन्न होते हैं और उससे ज्ञान की प्राप्ति होती है, पर मन क्या है? मन को जानो उसे टटोलो उसे समझने का प्रयास करो भारत में ऋषियों ने मन के स्वभाव को समझना चाहा उन्होंने उस मन को जानने का प्रयास किया जिससे सुप्त रहते सुख-दुख की वेदना नहीं होती और जिसके जागते ही समस्त प्रकार की संवेदनाएं होने लगते हैं वह निरंतर मन का शोध करते रहे और एक दिन आया जब उन्होंने मन को समझ लिया उन्होंने उस विधि का आविष्कार कर लिया जिससे मन को जाना जा सकता है मन को जानने की इस विधि को योग कहा गया है।
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