योग मन के प्रवाह को बांधने की विद्या
योग मन के प्रवाह को बांधने की विधि है। योग की परिभाषा में कहा गया है कि चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम ही योग है। चित्त की वृत्तियां कभी स्थिर नहीं रहती वह सदैव चंचल रहती हैं इन प्रवाह मान चित्त वृत्तियों को बांधना अत्यंत दुष्कर कार्य है तथापि चित्त वृत्तियों को बांधने पर ही मन को जाना जा सकता है इसके लिए मन को रोकना होगा विचार के सहारे विचारों को काटना होगा। विचार के द्वारा ही विचार के ऊपर उठना होगा। यही विधि है। यह विधि सुनने में बड़ी पहेली सी लगती है विचार के सहारे हम विचारों को कैसे काट सकते हैं? भारतीय साधकों ने इस पहेली को सुलझाया उन्होंने कहा संसार में रहने पर मन सदैव चंचल बना रहता है वह स्वाभाविक रूप से बहता रहता है जब सांसारिक झमेले आते हैं तब उसका प्रभाव और भी प्रखर बन जाता है इसलिए संसार में रहकर तुम मन को नहीं जान सकते अत एव तुम जंगल की ओर चले जाओ ऐसे एकांत स्थल में निवास करो जहां संसार और उसकी चिंता तुम्हारे सामने ना हो तब तो भोजन की कोई समस्या ही नहीं थी प्रकृति परम दयामई थी नदी स्वच्छ जल से भरी हुई थी वृक्ष फलों से लदे रहते और धरती में प्रचुर मात्रा में कंदमूल फल समाये रहते तब लोग मन को जानने के लिए अरण्य वासी हो जाया करते और कंदमूल खाकर आत्म चिंतन में लगे रहा करते वह विचार करते कि मन का स्वभाव कैसा है? जीवन को इस पहेली का अर्थ क्या है? जन्म और मृत्यु का तात्पर्य क्या है? प्रकृति के अंतराल में जो मूलसत्ता है उसका स्वरूप क्या है।
परंतु मन में हमारे एक सवाल और उठता है कि यह मन कितना शक्तिशाली है? पहले यह जान लिया जाए उसी अनुरूप इसकी तैयारी की जाए इसको जानने की एक सामान्य सी विधि है जैसे एक कमरे में एक दीपक जला लीजिए जिसकी लव से धुआं ना निकल रहा हो और कोशिश यह कीजिए कि उस समय वातावरण शांत हो अर्थात खूब सुबह का समय हो उसी समय मन को एकाग्र चित्त करके सिर्फ उस लव को देखिए और उसके अलावा किसी और के बारे में विचार ना उठने लीजिए आप पाएंगे कि यह एक दो या 5 सेकंड से ज्यादा मन स्थिर नहीं रह पाता। और कोई न कोई हमारे मन में विचार उठ जाता है इससे आप उसको बार-बार लगाने की कोशिश करेंगे और बार-बार मन हटेगा प्रारंभ में यह बहुत कठिन लगेगा किंतु एक बार यह साध लिया जाए और मन को धीरे धीरे दो चार या 6 महीने में इस योग्य कर लिया जाए कि वह एकाग्र हो सके तो उस समय अगर आप कोई विषय एकाग्र हों के पढ़ते हैं तो स्वता ही व एक या दो बार में आपको याद हो जाएगा और कभी भी भूलेगा नहीं यह विधि मैंने स्वामी विवेकानंद की एक छोटी सी पुस्तक में पड़ी थी जिसका नाम "एकाग्रता" था जिसे मैं आपको यहां बता रहा हूं क्योंकि आजकल जंगल में जाना सभी के लिए संभव नहीं है।
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